हिन्दी दिवस : क्या इस भाषा के इन शब्दों के अर्थ जानते हैं आप?

नई दिल्ली: Hindi Diwas : आज के बदलते दौर में अलग-अलग भाषाओं का अपना महत्व है. अंग्रेजी भाषा को लोग आजकल ज्यादा महत्व देते हैं, लेकिन इस बीच हिन्दी भाषा अपनी पहचान बनाए हुए है. खास बात तो ये है कि अंग्रेजी की रोमन लिपि में शामिल कुछ वर्णों की संख्‍या 26 है, जबकि हिन्दी की देवनागरी लिपि के वर्णों की संख्‍या इससे दोगुनी यानी 52 है. हिंदी भाषा का अपना महत्व है. हिंदी के महत्व को बनाए रखने के लिए भारत में हर साल 14 सितंबर (14 September) को हिन्‍दी दिवस मनाया जाता है. हिन्‍दी भारत की राजभाषा है, जिसे आधिकारिक रूप से आजादी के दो साल बाद मान्‍यता मिली. बता दें कि 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में एक मत से यह फैसला लिया गया कि भारत की राजभाषा हिन्‍दी होगी. इसके बाद हिन्‍दी के प्रचार-प्रसार और जनमानस की मान्‍यता के लिए वर्धा स्थित राष्‍ट्र भाषा प्रचार समित‍ि ने हिन्‍दी दिवस मनाने का अनुरोध किया. इसके बाद 14 सितंबर 1953 से पूरे भारत में हर साल हिंदी दिवस मनाया जाने लगा. तब से अभी तक हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है. आज हिंदी दिवस के खास मौके पर हम आपको इस भाषा के कुछ खास शब्द और उनके अर्थ बता रहे हैं.

आइए जानते हैं इन शब्दों के अर्थ…

तरणि– नाव

सुरभित– सुगंधित

यत्किंचित– थोड़ा बहुत

पाषाण कोर्त्तक– पत्थर की मूर्ति बनाने वाला

प्रगल्भ– होशियार

सुमुत्सुक– उत्साहित

चरायंध– बदबू

किंकर्तव्यविमूढ़– जब यह समझ ना आए कि क्या करना चाहिए.
किम् – क्या
कर्तव्य– करने योग्य
विमूढ़ – समझ नहीं आने की स्थिति

Hindi Diwas : क्‍या है हिन्‍दी दिवस का इतिहास?
यूं तो भारत विभिन्‍न्‍ताओं वाला देश है. यहां हर राज्‍य की अपनी अलग सांस्‍कृतिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक पहचान है. यही नहीं सभी जगह की बोली भी अलग है. इसके बावजूद हिन्‍दी भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है. यही वजह है कि राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी ने हिन्‍दी को जनमानस की भाषा कहा था. उन्‍होंने 1918 में आयोजित हिन्‍दी साहित्‍य सम्‍मेलन में हिन्‍दी को राष्‍ट्र भाषा बनाने के लिए कहा था.

आजादी मिलने के बाद लंबे विचार-विमर्श के बाद आखिरकार 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में हिन्‍दी को राज भाषा बनाने का फैसला लिया गया. भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्‍याय की धारा 343 (1) में हिन्‍दी को राजभाषा बनाए जाने के संदर्भ में कुछ इस तरह लिखा गया है, ‘संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी. संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा.’हालांकि हिन्‍दी को राजभाषा बनाए जाने से काफी लोग खुश नहीं थे और इसका विरोध करने लगे. इसी विरोध के चलते बाद में अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा दे दिया गया.

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