हरियाणा में दुष्यंत चौटाला न घर के न घाट के… BJP के साथ रहकर क्या पाया-क्या खोया?

हरियाणा की सियासत में साढ़े चार साल पहले किंगमेकर बनकर दुष्यंत चौटाला उभरे थे. बीजेपी को समर्थन देकर खट्टर सरकार में दुष्यंत डिप्टीसीएम बने, लेकिन अब लोकसभा चुनाव से ठीक पहले गठबंधन टूट गया है. सीएम मनोहर लाल खट्टर सहित कैबिनेट के सभी मंत्रियों ने सामूहिक इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया और अब नायब सैनी के नेतृत्व में नई सरकार भी बना ली है. बीजेपी ने जेजेपी से अलग होकर हरियाणा में अकेले सरकार बनाने ही नहीं बल्कि लोकसभा चुनाव लड़ने का भी फैसला किया है. ऐसे में दुष्यंत चौटाला न अब घर के बचे हैं और न घाट के. हरियाणा की सियासी चक्रव्यूह में जेजेपी घिर गई है.

लोकसभा चुनाव की राजनीतिक सरगर्मी के साथ ही हरियाणा की सियासत नई करवट लेती दिख रही है. बीजेपी और जेजेपी का गठबंधन टूट गया है और अब दोनों की राह एक दूसरे से जुदा हो गई है. हालांकि, बीजेपी के पास जेजेपी से गठबंधन तोड़ने की राजनीतिक वजह भी हैं. बीजेपी के नेता मान रहे थे कि जेजेपी के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने से पार्टी को नुकसान हो सकता है, क्योंकि दोनों ही पार्टियों की सियासत एक दूसरे के खिलाफ रही है.

बीजेपी हरियाणा में गैर-जाट पॉलिटिक्स करके अपनी सियासी जमीन तैयार की है तो जेजेपी की राजनीति पूरी तरह से जाट समुदाय के इर्द-गिर्द सिमटी है. दुष्यंत चौटाला ने करीब साढ़े चार साल तक बीजेपी से सटकर भले ही सत्ता का सुख भोगा हो, लेकिन गठबंधन ऐसे समय टूटा है कि उनके पास कोई सियासी विकल्प नहीं बचा है. इतना ही नहीं जेजेपी के विधायकों के टूटने का खतरा भी दिख रहा है. दुष्यंत चौटाला कहीं के नहीं बचे हैं. बीजेपी के साथ मिलकर दुष्यंत चौटाला ने क्या पाया और क्या खोया?

जेजेपी का क्या फायदा मिला
दुष्यंत चौटाला अपने चाचा अभय चौटाला और दादा ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी इनोलो से अलग होकर अपनी नई पार्टी जेजेपी बनाई थी. 2019 में दुष्यंत चौटाला की जेजेपी पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ी और 10 सीटें जीतकर किंगमेकर बनी. बीजेपी बहुमत से पांच सीटें कम रह गई, जिसके बाद दुष्यंत चौटाला ने समर्थन देकर खट्टर की सरकार बनवाई. दुष्यंत चौटाला उपमुख्यमंत्री बने और जेजेपी कोटे से दो मंत्री बने थे, जिसमें देवेंद्र सिंह बबली और अनूप धानक शामिल थे. जेजेपी नेताओं ने साढ़े चार साल तक सत्ता का सुख भोगा.

मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के संग डिप्टी सीएम होने के चलते दुष्यंत चौटाला हर जगह साथ नजर आते थे. जाट बहुल इलाके में ही नहीं बल्कि हरियाणा में दुष्यंत ने अपना सियासी पहचान बनाने का काम किया. सत्ता में भागीदार होने के चलते जेजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को हौसले बुलंद रहे. जेजेपी विधायक भी सरकार में होने के चलते मजबूती से जुड़े रहे. दुष्यंत चौटाला ने अपने करीबी नेताओं और समर्थकों को सरकार में भी एडजस्ट करने का काम किया, जिसमें उन्होंने कई लोगों को आयोग का चेयरमैन बनवाया.

अजय चौटाला ने उठाया सत्ता सुख
बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाते ही दुष्यंत चौटाला के पिता अजय चौटाला को राहत मिली थी. पहले उन्हें पैरोल पर जमानत मिली थी और उसके बाद रिहा हो गए थे, क्योंकि उन्होंने दस साल की सजा पूरी कर ली थी. जेल से बाहर आते ही अजय चौटाला ने जेजेपी की कमान संभाल ली थी और सत्ता में भागीदार होने के चलते उनकी सियासी तूती बोलती थी. सरकार में बराबर के हिस्सेदार थे, क्योंकि उनके बैसाखी के सहारे खट्टर की सत्ता चल रही थी. इस बात को जेजेपी ने बाखूबी समझा और अपनी सियासत को मजबूत करने का काम करती.

जेजेपी ने साढ़े चार साल में क्या खोया
इनोलो से अलग होकर अजय चौटाला और दुष्यंत चौटाला ने अपनी अलग जेजेपी बनाई तो जाट समुदाय के युवाओं के बीच एक उम्मीद की किरण जगाई थी. जेजेपी ने अपने पहले ही चुनाव में इनोलो का सफाया कर दिया और हरियाणा में उसका विकल्प ही नहीं बल्कि किंगमेकर बनकर उभरी. दुष्यंत चौटाला ने 2019 का चुनाव बीजेपी और खट्टर सरकार के खिलाफ लड़ा था, लेकिन नतीजे के बाद उन्होंने हाथ मिलाया तो उससे उनके समर्थकों को बड़ा झटका लगा, खासकर जाट समुदाय के बीच. कांग्रेस और इनोलो ने उसी समय से कहना शुरू कर दिया था कि जेजेपी को जनादेश मिला है, वो बीजेपी के खिलाफ मिला, लेकिन उन्होंने बीजेपी के हाथों में ही गिरवी रख दिया.

बीजेपी के साथ जेजेपी ने जब से मिलकर सरकार बनाई, उसके बाद हरियाणा में किसान और पहलवानों ने आंदोलन किया. इन दोनों ही आंदोलनों में जाट समुदाय के लोग बड़ी संख्या में शामिल थे. बीजेपी के साथ सत्ता में होने के चलते जाट समुदाय की नाराजगी दुष्यंत चौटाला के खिलाफ भी उपजी है. जाट समाज में जेजेपी का सियासी आधार खिसका है, जिसके चलते पंचायत चुनाव में उनकी पार्टी को हार का मूंह देखना पड़ा. बीजेपी के साथ होने के चलते मुस्लिम वोटबैंक में भी नाराजगी है. जेजेपी जिस सियासी समीकरण के सहारे किंगमेकर बनी थी, उसे सत्ता सुख उठाने के चक्कर में बिगाड़ दिया है.

न सत्ता का साथ न विपक्ष का
बीजेपी से गठबंधन टूटने के बाद जेजेपी अलग-थलग पड़ गई है. लोकसभा चुनाव सिर पर है. जेजेपी के अभी तक बीजेपी के साथ रहने के चलते विपक्षी गठबंधन में भी उसे जगह नहीं मिल सकी और अब जब खट्टर सरकार से बाहर हो गए हैं तो उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा है. कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन कर रखा है. इनोलो के साथ जेजेपी के एक होने की संभावना नहीं दिख रही है तो बसपा के साथ भी उनकी दोस्ती की कोई उम्मीद नहीं है, क्योंकि मायावती अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर रखा है. हरियाणा में कांग्रेस नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन और बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए के बीच सीधा मुकाबाला होने के आसार बन रहे हैं, जिसमें जेजेपी के लिए कोई राजनीतिक स्पेस नहीं दिख रहा है.

जेजेपी विधायक क्या टूट जाएंगे?
दुष्यंत चौटाला 2019 में जिन 10 विधायकों के दम पर किंगमेकर बनने है, उनमें से 6 विधायकों के टूटने का खतरा दिख रहा है. बीजेपी के साथ गठबंधन टूटने के बाद दुष्यंत चौटाला ने अपने विधायकों की बैठक बुलाई थी, जिसमें 6 विधायक शामिल नहीं हुई है. माना जा रहा है कि बैठक में न पहुंचने वाले 6 जेजेपी विधायक बीजेपी के संपर्क में है और खट्टर सरकार के समर्थन में खड़े हैं. जेजेपी के विधायक अगर टूटते हैं तो दुष्यंत चौटाला के लिए आगे की सियासी राह काफी मुश्किलों भरी हो जाएगी.

Related posts

Leave a Comment