कोल संकट से होगी बत्ती गुल! देश में बस चार दिनों का कोयला बचा

नई दिल्ली: पिछले कुछ दिनों से चीन से बिजली संकट (China Power Crisis) को लेकर लगातार खबरें आ रही हैं. चीन में बिजली संकट के चलते दुनिया भर के लिए वहां से होने वाला उत्पादन और सप्लाई प्रभावित हुई है. दूसरे देशों की कई कंपनियां भी बता रही हैं कि उनका कामकाज बिजली की वजह से प्रभावित हुआ है. कंपनियों को एक या दो घंटे पहले कहा जा रहा है कि उन्हें काम बंद करने की जरूरत है. चीन में दर्जनों कोयला बिजली संयंत्रों के उत्पादन में गिरावट के कारण बिजली कटौती ने उद्योगों को प्रभावित किया है, इससे विनिर्माण क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ है. बिजली कटौती के कारण व्यापार को नुकसान हुआ है, ऑर्डर रद्द कर दिए गए हैं और कच्चे माल का नुकसान हुआ है. लेकिन भारत भी ऐसी समस्या से जूझ रहा है.

देश में कोयले की सप्लाई में गिरावट के चलते देश एक बिजली संकट के मुहाने पर बैठा है. देश में कोयले का उत्पादन और सप्लाई ऐसी ठप हुई है कि अगर चीजें जल्द ही नहीं सुधरीं तो कुछ वक्त में भारत भी चीन की तरह कटौतियां करने को मजबूर हो सकता है, तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था पर जो असर होगा, वो होगा ही. देश में कोयला संकट बढ़ता जा रहा है और खानों से दूर स्थित (नॉन-पिटहेड) 64 बिजली संयंत्रों के पास चार दिन से भी कम का कोयला भंडार बचा है.

केंद्रीय बिजली प्राधिकरण (सीईए) की बिजली संयंत्रों के लिए कोयला भंडार पर ताजा रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि 25 ऐसे बिजली संयंत्रों में तीन अक्टूबर को सात दिन से भी कम समय का कोयला भंडार था. कम से कम 64 ताप बिजली संयंत्रों के पास चार दिनों से भी कम समय का ईंधन बचा है. सीईए 135 बिजली संयंत्रों में कोयले के भंडार की निगरानी करता है, जिनकी कुल उत्पादन क्षमता दैनिक आधार पर 165 गीगावॉट है. कुल मिलाकर तीन अक्टूबर को 135 संयंत्रों में कुल 78,09,200 टन कोयले का भंडार था, और यह चार दिन के लिए पर्याप्त है. रिपोर्ट में बताया गया कि 135 संयंत्रों में से किसी के भी पास आठ या अधिक दिनों का कोयले का भंडार नहीं था..

बिजली का खर्च हो सकता है और भारी
देश के कई राज्यों में पहले से महंगी बिजली और महंगी हो सकती है. दरअसल, देश की 70 फीसदी बिजली के उत्पादन में कोयले का इस्तेमाल होता है, ऐसे में सप्लाई कम होने से बिजली की हाजिर कीमतें बढ़ गई हैं. रिपोर्ट के अनुसार क्रेडिट रेटिंग एजेंसी Crisil Ltd. के इंफ्रास्ट्रक्चर एडवाइज़री के डायरेक्टर प्रणव मास्टर ने कहा कि ‘जब तक सप्लाई में स्थिरता नहीं आती है, तब तक कुछ जगहों पर बिजली कटौती देखी जा सकती है, वहीं कुछ जगहों पर उपभोक्ताओं पर बिजली बिल का खर्चा बढ़ सकता है.’

उन्होंने कहा कि उपभोक्ताओं के लिए बिजली की कीमतों का असर कुछ महीनों बाद दिखेगा क्योंकि तब वितरण कंपनियों को इसकी अनुमति मिल जाएगी कि वो संकट में बढ़े लागत का खर्चा बिजली बिल बढ़ाकर निकाल लें.

क्यों कोयला सप्लाई है संकट में
रिपोर्ट के मुताबिक, कोयला सप्लाई में दिख रहे इस संकट के पीछे दो बड़ी चुनौतियां हैं, जिनका देश सामना कर रहा है. दरअसल, महामारी के बाद औद्योगिक गतिविधियों को तेजी मिली है. विनिर्माण क्षेत्र में चीजें आगे बढ़ रही हैं ऐसे में बिजली की मांग बढ़ी हैं. वहीं कोयले के आउटपुट यानी उत्पादन में गिरावट आई है. दरअसल, इस मॉनसून में असामान्य मात्रा में भारी बारिश ने कोयलों की खानों को भर दिया है, वहीं ट्रांसपोर्ट के रास्ते भी प्रभावित हुए हैं. ऐसे में कोयला उत्पादन और सप्लाई दोनों ही एक साथ प्रभावित हो गई हैं. अक्टूबर के अगले हफ्तों में स्थिति सुधरने की उम्मीद है, लेकिन इस दौरान जो कमी रही है, उसकी भरपाई फिर भी होनी मुश्किल है.

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