MP : फांसी की सजा के मामलों में सरकारी वकीलों को पुरस्कार देने की नीति पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल

नई दिल्ली: निचली अदालतों में मृत्युदंड के मामलों में सफलतापूर्वक जिरह करने के लिए सरकारी अभियोजकों को पुरस्कृत करने या प्रोत्साहन देने की मध्य प्रदेश सरकार (Madhya Pradesh Government) की नीति उच्चतम न्यायालय (Supreme Court ) की पड़ताल के घेरे में आ गई है. न्यायमूर्तियों की पीठ ने अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल की इस दलील पर गौर किया कि अभियोजकों को पुरस्कृत करने की इस तरह की प्रथा को शुरू में ही खत्म कर दिया जाना चाहिए. अटॉर्नी जनरल मौत की सजा का फैसला करने के लिए डेटा और जानकारी संग्रह में शामिल प्रक्रिया की जांच पड़ताल करने तथा इसे संस्थागत बनाने के लिए स्वत: संज्ञान लेकर दर्ज एक मामले में शीर्ष अदालत की सहायता कर रहे हैं.

मध्य प्रदेश में नीति या ऐसी व्यवस्था के बारे में बताए जाने पर, जिसके तहत लोक अभियोजकों को मृत्युदंड के मामलों में सफलतापूर्वक जिरह करने के लिए पुरस्कृत किया जा रहा है और प्रोत्साहन दिया जा रहा है, पीठ ने राज्य की वकील को सुनवाई की अगली तिथि 10 मई को संबंधित दस्तावेजों को रिकॉर्ड में रखने और इसका बचाव करने के लिए तैयार रहने को कहा.
पीठ ने कहा, ‘ मध्य प्रदेश में ऐसी नीति है, जिसमें सरकारी वकीलों को उनके द्वारा जिरह किए जाने संबंधी मामलों में किसी को सुनाई गई मौत की सजा के आधार पर प्रोत्साहन या वेतन वृद्धि दी जाती है.” पीठ ने राज्य की ओर से पेश वकील रुक्मिणी बोबडे से नीति को रिकॉर्ड में रखने और उसका बचाव करने के लिए कहा.

अदालत ने यह भी कहा कि वह उन मामलों के लिए दिशानिर्देश जारी करने पर विचार कर रही है जिसमें अपराध के लिए अधिकतम सजा मृत्युदंड है. इसने कहा कि आपराधिक मुकदमे का सामना कर रहे आरोपियों को उचित कानूनी सहायता सुनिश्चित करने के लिए राज्य की ओर से मामलों पर जिरह करने वाले सरकारी अभियोजकों की तरह, राष्ट्रीय विधि सेवा प्राधिकरण (NALSA) देश के हर जिले में बचाव पक्ष के वकील या ‘पब्लिक डिफेंडर्स’ का कार्यालय स्थापित कर सकता है.

पीठ ने कहा कि यह संबंधित अधिवक्ताओं द्वारा स्वीकार किया गया है कि इस मामले पर जल्द से जल्द विचार करने की आवश्यकता है. इसने उन्हें अन्य अधिकार क्षेत्रों में भी मृत्युदंड से संबंधित प्रासंगिक सामग्री दाखिल करने को कहा. शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को जघन्य अपराध के मामलों में मृत्युदंड देने में शामिल प्रक्रिया की जांच-पड़ताल और इसे संस्थागत बनाने के लिए स्वत: संज्ञान मामले में कार्यवाही शुरू की. यह मामला इरफान नाम के एक व्यक्ति की याचिका से जुड़ा है जिसमें उसने निचली अदालत द्वारा उसे मौत की सजा सुनाए जाने और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा उसकी पुष्टि किए जाने को चुनौती दी है.

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