रिश्तेदार बात का बतंगड़ बना देते हैं, सहिष्णुता है शादी की नींव: सुप्रीम कोर्ट

सहनशीलता और सम्मान एक अच्छे विवाह की नींव हैं. छोटे-मोटे झगड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं किया जाना चाहिए. एक-दूसरे की गलतियों को एक निश्चित सीमा तक सहन करना हर विवाह में अंतर्निहित होना चाहिए. कई बार विवाहित महिला के माता-पिता और करीबी रिश्तेदार बात का बतंगड़ बना देते हैं. शादी बचाने के बजाय वे ऐसे कदम उठाते हैं कि छोटी-छोटी बातों पर वैवाहिक बंधन पूरी तरह नष्ट कर देते हैं. एक मामले की सुनवाई करते हुए ये बातें सुप्रीम कोर्ट ने कहीं.

दरअसल, एक महिला ने पति के खिलाफ दहेज-उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया था. केस कोर्ट में पहुंचा. सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक जुलाई से लागू होने वाली भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 और 86 में बदलाव की जरूरत है. यह धारा दहेज से संबंधित है. इसके दुरुपयोग को रोकने की जरूरत है.

‘मामलों को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है’
जस्टिस जमशेद पारदीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 मौजूदा आईपीसी की धारा 498ए का ही रूप है. धारा 86 में क्रूरता की परिभाषा को विस्तृत किया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने 14 साल पहले दहेज निवारण कानूनों पर पुनर्विचार का आदेश दिया था. दहेज के लिए विवाहिता को तंग करने के मामलों को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है.

कोर्ट ने कहा कि इसके दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट कई फैसले दे चुका है. सरकार से कह चुका है कि इस पुर्नविचार की आवश्यकता है. मगर, नए कानून में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों को जगह नहीं दी गई है. दहेज के लिए विवाहिता को प्रताड़ित करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही. कोर्ट ने अपने फैसले की प्रति गृह और कानून मंत्रालय को भेजी है. ताकि आईपीसी की जगह लेने वाली भारतीय न्याय संहिता में परिवर्तन किया जा सके.

छोटे-मोटे मतभेद सांसारिक मामले हैं’
परामर्शदाता जैसी सलाह देते हुए कोर्ट ने कहा कि एक अच्छे विवाह की नींव सहिष्णुता, समायोजन और एक-दूसरे का सम्मान करना है. छोटी-मोटी नोक-झोंक, छोटे-मोटे मतभेद सांसारिक मामले हैं और इन्हें बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं किया जाना चाहिए. जोड़ियां स्वर्ग में बनती हैं. इसे किसी तरह भी नष्ट करना उचित नहीं है.

पीठ ने कहा कि महिला, उसके माता-पिता और रिश्तेदारों के दिमाग में सबसे पहली चीज जो आती है वो है पुलिस, क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस सभी बुराइयों का रामबाण इलाज है. अगर पति-पत्नी के बीच सुलह की उचित संभावना होती भी है, तो मामला पुलिस के पास ले जाकर इसे समाप्त कर लिया जाता है. इन विवादों में मुख्य पीड़ित बच्चे होते हैं.

‘पति-पत्नी दिल में इतना जहर लेकर लड़ते हैं’
कोर्ट ने कहा, ‘पति-पत्नी अपने दिल में इतना जहर लेकर लड़ते हैं कि वे एक पल के लिए भी नहीं सोचते कि अगर शादी खत्म हो जाएगी, तो बच्चों पर क्या असर होगा. जहां तक बच्चों के लालन-पोषण की बात है तो तलाक एक बहुत ही संदिग्ध भूमिका निभाता है. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, इसका एकमात्र कारण यह है कि पूरे मामले को ठंडे दिमाग से संभालने के बजाय, आपराधिक कार्यवाही शुरू करने से एक-दूसरे के लिए नफरत के अलावा कुछ और नहीं मिलेगा’.

‘पति और उसके परिवार द्वारा पत्नी के साथ वास्तविक दुर्व्यवहार और उत्पीड़न के मामले हो सकते हैं. इस तरह के दुर्व्यवहार या उत्पीड़न का स्तर अलग-अलग हो सकता है. न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक विवादों में पुलिस तंत्र का सहारा अंतिम उपाय के रूप में लिया जाना चाहिए’.

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