पूर्व केंद्रीय रक्षा मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) के अध्यक्ष शरद पवार बिहार आ रहे हैं. करीब 20 साल के बाद यह पहला मौका होगा, जब शरद पवार के बिहार आने की योजना बनी है. अंतर यह है कि बीस साल पहले जब शरद पवार बिहार आए थे, तब उनकी पार्टी टूटी नहीं थी, लेकिन इस बार जब वह बिहार आएंगे, तब उनकी पार्टी टूट चुकी है और राजधानी में उनका दफ्तर भी बंद हो गया है. शरद पवार की पार्टी इस बार बिहार में चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. दरअसल, शरद पवार की पार्टी का बिहार में वजूद रहा है. 2014 लोकसभा चुनाव में कटिहार से जब तारिक अनवर सांसद चुने गए थे तो उस वक्त वह शरद पवार की पार्टी के ही वरिष्ठ नेता थे. हालांकि तब यह भी कहा जा रहा था कि तारिक अनवर की जीत, शरद पवार की पार्टी की जीत नहीं बल्कि तारिक अनवर की अपनी पहचान पर मिली है.
शरद पवार की पार्टी बिहार में न केवल विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है बल्कि कार्यकर्ता सम्मेलन को भी आयोजित करने की तैयारी में है. हालांकि यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि शरद पवार इंडिया गठबंधन में बिहार विधानसभा चुनाव को लडेंगे या फिर अलग हो कर के. पार्टी की बिहार ईकाई ने चुनाव लड़ने का फैसला आला कमान पर छोड़ रखा है.
फरवरी माह बिहार के लिए अहम
बिहार में इस साल विधानसभा के चुनाव होने हैं. देश की तमाम सियासी पार्टियों की नजर बिहार पर टिकी हुई है. क्योंकि बिहार की राजनीति और बिहार के चुनाव पर पूरे देश और दुनिया की नज़रें टिकी रहती हैं. फरवरी माह बिहार की राजनीति के लिए बहुत बड़ा और अहम महीना साबित होने जा रहा है. इस माह में एक तरफ जहां कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी बिहार का दौरा कर चुके हैं, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 24 फरवरी को भागलपुर आएंगे. इसके तीन दिन बाद शरद पवार भी बिहार आएंगे. इस दौरान वह पूर्णिया के साथ कभी अपने गढ़ रहे कटिहार जिले में भी जाएंगे.
इंडिया गठबंधन के लिए अग्नि परीक्षा!
शरद पवार की पार्टी बिहार में अगर अकेले चुनाव लड़ना तय करती है तो यह महागठबंधन के लिए अग्नि परीक्षा का वक्त होगा. क्योंकि शरद पवार की पार्टी इंडिया गठबंधन की एक अहम घटक दल है. इंडिया गठबंधन के गठन होने के बाद जितने भी चुनाव हुए हैं, उसमें शरद पवार गुट ने इंडिया गठबंधन के बैनर तले अपना चुनाव लड़ा है. हाल ही में महाराष्ट्र में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में एनसीपी शरद पवार गुट ने इंडिया गठबंधन के साथ चुनाव लडा था. इतना ही नहीं, इंडिया गठबंधन की जितनी बैठकें हुईं, उनमें शरद पवार की अहम भूमिका रही. ऐसे में अगर वह बिहार में अकेले लड़ने का फैसला करते हैं तो यह इंडिया गठबंधन के लिए एक झटका साबित हो सकता है. हालांकि यह अभी वक्त और शरद पवार पर निर्भर है कि वह क्या निर्णय लेते हैं?
सुप्रिया सुले भी रहेंगी साथ
मिली जानकारी के अनुसार अपने बिहार दौरे में शरद पवार अकेले नहीं आएंगे बल्कि उनके साथ उनकी बेटी और एनसीपी शरद चंद्र पवार गुट की राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले भी होंगी. इसके अलावा पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेता भी शरद पवार के साथ आ सकते हैं. बता दें कि 20 साल पहले वर्ष 2005 में अंतिम बार शरद पवार पूर्णिया आए थे, तब उन्होंने पूर्णिया के रंगभूमि मैदान में एक सभा को संबोधित किया था.
महागठबंधन का सीट एडजेंस्टमेंट
अगर शरद पवार बिहार में महागठबंधन के साथ चुनाव लडने की घोषणा करते हैं, तो इसका सीधा असर बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के सीट एडजस्टमेंट पर पड सकता है. क्योंकि बिहार में राजद, कांग्रेस के साथ तीन वाम दल भी हैं. कांग्रेस पिछले विधानसभा चुनाव में 70 सीटों पर चुनाव लड चुकी है. उसका इरादा इस बार ज्यादा सीटों पर चुनाव लडने का है. ऐसे में अगर शरद पवार महागठबंधन में आकर चुनाव लडेंगे तो किसके हिस्से में कितनी सीटें आएंगी, यह देखना दिलचस्प होगा. और वह अकेले चुनाव लडेंगे तो उनके साथ खुला मैदान रहेगा.
पटना में खाली कराया गया था दफ्तर
हाल ही में शरद पवार की पार्टी की राजधानी की वीरचंद पटेल मार्ग पर स्थित दफ्तर को भी खाली कराया गया था. तब यह बताया गया था कि शरद पवार की पार्टी का विभाजन होने और उनकी पार्टी का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिन जाने के बाद भवन निर्माण विभाग ने यह कदम उठाया था. उस वक्त पार्टी का दफ्तर खाली करने को लेकर के बिहार में काफी राजनीतिक हंगामा भी हुआ था.
अल्पसंख्यकों को साधने की कोशिश
वरिष्ठ पत्रकार संजय उपाध्याय कहते हैं, शरद पवार का सीमांचल में आना और यहां रैली या संबोधन करना, इस इलाके के अल्पसंख्यक वोटरों को साधने की कोशिश हो सकती है. सीमांचल के किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया जिले में करीब 20 ऐसे जिले हैं, जहां पर अल्पसंख्यकों की संख्या जीत या हार को निर्धारित करती है. ऐसे में अगर शरद पवार यहां आएंगे और अपनी रणनीति को मजबूत करेंगे तो इसका सीधा असर, राजद, कांग्रेस और एआइएमआइएम पर पड़ सकता है.
इसके पीछे दबाव की राजनीति
संजय उपाध्याय कहते हैं, दरअसल शरद पवार को पूर्णिया जैसे इलाके में बुलाना दबाव की राजनीति का एक हिस्सा हो सकता है. कहा तो यह जा रहा है कि इसके पीछे पप्पू यादव का अहम रोल है. दबाव की राजनीति के तहत उनको बुलाया जा रहा है. वह बाहर नहीं आना चाहते हैं. पर्दे के पीछे से अपना खेल करना चाहते हैं. पप्पू यादव की कोशिश एक साथ राजद और कांग्रेस पर दबाव बनाने की है.