ब्रांड केजरीवाल क्यों हो गया फ्लॉप? जिस तेजी से बढ़ा, उतनी ही तेजी से गिरा ग्राफ?

देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ 13 साल पहले खड़े हुए आंदोलन से निकल कर अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में कदम रखा. केजरीवाल ने अपने पहले ही सियासी मैच में शानदार प्रदर्शन कर सभी को चौंका दिया था. इसके बाद दिल्ली में तीन बार सरकार बनाई, जिसमें एक बार गठबंधन और दो बार प्रचंड बहुमत के साथ. इसके साथ ही आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाई और पंजाब में अपने दम पर सरकार बनाई, लेकिन जिस तेजी से केजरीवाल की अगुवाई में AAP का सियासी ग्राफ बढ़ा, उतनी ही तेजी से डाउन फॉल भी हुआ है.

दिल्ली की सत्ता में रहते हुए ब्रांड केजरीवाल को एक मजबूत पहचान मिली है. देश में पीएम मोदी के बाद अरविंद केजरीवाल ही सबसे बड़े चेहरे के तौर पर उभरे हैं. बीजेपी जिस तरह से पीएम मोदी के नाम और काम पर वोट मांगती है, उसी तरह आम आदमी पार्टी भी केजरीवाल के नाम, काम और चेहरे पर ही वोट मांगती रही. आम आदमी पार्टी की सियासी ताकत केजरीवाल बनकर उभरे. केजरीवाल के नाम और काम के सहारे आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में तीन बार सरकार बनाई, लेकिन चौथी बार के चुनाव में ब्रांड केजरीवाल क्यों फ्लॉप हो गया?

दिल्ली की सत्ता से बना ब्रांड केजरीवाल
अरविंद केजरीवाल ने 26 नवंबर 2012 को आम आदमी पार्टी के गठन की घोषणा करते हुए कहा था कि मजबूरी में हम लोगों को राजनीति में उतरना पड़ा है. हमें राजनीति नहीं आती है. हम इस देश के आम आदमी हैं जो भ्रष्टाचार और महंगाई से दुखी हैं, उन्हें वैकल्पिक राजनीति देने के लिए आए हैं. इसके साथ ही दिल्ली की सत्ता में आने के बाद अरविंद केजरीवाल ने मुफ्त-बिजली, पानी, शिक्षा का एक मॉडल तैयार किया था, जिसे दिल्ली विकास मॉडल गया था. यही केजरीवाल की राजनीतिक ताकत बना.

अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति का ऐलान कर रखा था. इसके अलावा वीआईपी कल्चर के बजाय आम आदमी पार्टी की तरह साधारण तरीके रहन-सहन रखने की बातें की थी. इस तरह केजरीवाल ने अपना खुद की छवि गढ़ी थी. ब्रांड केजरीवाल की मजबूती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब ब्रांड मोदी को पूरे देश में कामयाबी मिल रही थी तो दो बार ब्रांड केजरीवाल ने उन्हें तगड़ी टक्कर दी थी. दिल्ली में 2015 और 2020 में जब पूरे देश पर ब्रांड मोदी का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा था तो उस समय दिल्ली की जनता के सिर केजरीवाल का जादू छाया था. ब्रांड केजरीवाल के आगे बीजेपी दस साल तक दिल्ली में पस्त नजर आई, लेकिन 2025 आते-आते ब्रांड फ्लॉप हो गई.

ब्रांड केजरीवाल क्यों हो गया फ्लॉप
राजनीति विश्लेषक मानते हैं कि ब्रैंड केजरीवाल को इसलिए मजबूत मिली, क्योंकि लोगों को लगा कि आम आदमी पार्टी दूसरे दलों से पूरी तरह अलग हटकर काम करेंगे. यही वजह थी कि सिर्फ कांग्रेस के जनाधार वाले वोटरों ने ही नहीं बल्कि मिडिल क्लास ने भी उन्हें भरपूर समर्थन दिया. केजरीवाल अपनी छवि और ब्रांड के दम पर ही पंजाब में सरकार बनाने में कामयाब रहे, लेकिन 2025 के चुनाव में आम आदमी पार्टी के बुरी तरह से शिकस्त खाने के बाद ब्रांड केजरीवाल पर सवाल खड़े होने लगे हैं

ब्रांड केजरीवाल के फ्लॉप होने की वजह भी उनकी बदली हुई राजनीति रही है. केजरीवाल के सियासी उभार और चुनावी हार की वजह एक ही है. केजरीवाल जब राजनीति में आए थे तो भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस और वीआईपी कल्चर से दूर रहने की बात कही थी, लेकिन सत्ता मिलने के बाद उस पर पूरी तरह खरे नहीं उतर सके. बीजेपी ने ब्रांड केजरीवाल को ही अपने टारगेट पर लिया और उनका भ्रष्टाचार मिटाने और साफ-सुथरी राजनीति करने के दावे की पूरी तरह हवा निकाल दी.

केजरीवाल की छवि को लगा झटका
आम आदमी पार्टी के गठन के साथ ही उन्होंने अन्ना आंदोलन में दिया गया एक भरोसा तोड़ दिया. केजरीवाल ने रामलीला मैदान के मंच से कहा था कि हम तो आम आदमी हैं, हम तो दो कमरे के घर में रह लेंगे, बड़ी गाड़ियों और सुरक्षा के तामझाम की हमें जरूरत नहीं, भ्रष्टाचारियों को पहले दिन से ही जेल में डालेंगे. इस तरह के अनगिनत दावे और वादे अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली और देश की जनता से किया था, लेकिन सत्ता की मलाई उन्हें इतनी मीठी लगी कि वो जैसे भूल ही गए कि उन्होंने कहा क्या था और कर क्या रहे हैं. केजरीवाल ने सीएम रहते हुए अपने सरकारी घर में करोड़ों रुपये खर्च कर दिया, जिसे बीजेपी ने शीश महल का नाम दिया.

अरविंद केजरीवाल पर शराब घोटाले का आरोप लगा तो उन्हें जेल जाना पड़ा. दिल्ली की जनता की नजरों में केजरीवाल की पटरी बाज राजनीति तो भटकने लगी ही थी, भ्रष्टाचार के आरोप ने उनकी यूएसपी को ही खत्म कर दिया. केजरीवाल खुद को कट्टर ईमानदार बताते रहे, लेकिन इस चुनाव में एक बार भी उन्होंने खुद को कट्टर ईमानदार वाली बात नहीं कही. इसके अलावा तथाकथित शराब घोटाले ने केजरीवाल की छवि को पूरी तरह धूमिल कर दिया. बीजेपी पूरे चुनाव में सिर्फ दो मुद्दे ही बनाती रही, जिसमें एक शराब घोटाला और दूसरा शीश महल का था.

केजरीवाल की क्रेडिबिलिटी पर सवाल
अरविंद केजरीवाल ने यमुना की सफाई का वादा किया, लेकिन उसे निभाया नहीं. बीजेपी ने यमुना सफाई का मुद्दा चुनाव में जबरदस्त तरीके से उठाया. केजरीवाल ने महिलाओं को 2100 रुपये महीने देने का वादा किया, लेकिन पंजाब चुनाव में भी एक हजार रुपये महिलाओं को देने का ऐलान किया था, जिसको पूरा नहीं कर सके. सत्ता में आने के पहले केजरीवाल ने वादा किया था कि दिल्ली में लोकपाल बनाएंगे, लेकिन 11 साल तक तक सत्ता में रहने के बाद भी उस पर अमल नहीं कर सके. एमसीडी के चुनाव में केजरीवाल ने वादा किया था कि नगर निगम में आम आदमी पार्टी आएगी तो कूड़ा हटा देगी. तीन साल होने जा रहे हैं, लेकिन कूड़ा नहीं हटा सके. दिल्लीवासियों को प्रदूषित हवा से मुक्ति दिलाने जैसे बड़े लुभावने वादे किए, लेकिन उस पर खरे तो नहीं उतर सके. दिल्ली की सड़कों की बदहाली हो या नए इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने के प्रति बेरुखी, आम आदमी पार्टी की सरकार जनता को यही अहसास कराती रही कि वह किसी वादे पर ऐतबार करना अब छोड़ दें. इस तरह केजरीवाल की क्रेडिबिलिटी पर भी सवाल खड़े हुए, जिसके चलते उनकी छवि को गहरा धक्का लगा और चुनाव में उसका खामियाजा आम आदमी पार्टी को उठाना पड़ा.

केजरीवाल की फ्री-बीज का काउंटर प्लान
अरविंद केजरीवाल की छवि दिल्ली में फ्री-बिजली-पानी-शिक्षा के दम पर बनी थी. इसी के सहारे केजरीवाल ने देश भर में दिल्ली के विकास मॉडल को पेश किया, लेकिन इस बार के चुनाव में बीजेपी ने भी फ्री-बिजली-पानी के साथ तमाम वादों का ऐलान कर दिया. 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के घोषणा पत्र में बीजेपी ने साफ कर दिया था कि वह सत्ता में आई तो भी केजरीवाल सरकार की किसी भी फ्री स्कीम को खत्म नहीं करेगी बल्कि बीजेपी ने एक कदम आगे बढ़कर महिलाओं को हर महीने आप के 2,100 रुपये की जगह 2,500 रुपये देने का वादा कर दिया था. इस एक वादे ने केजरीवाल की सियासी बढ़त को पाट दिया और बीजेपी के 27 साल के सियासी वनवास को खत्म किया.

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