देश के 801 जिलों में घरेलू हिंसा से संबंधित 4.7 लाख से अधिक मामले लंबित हैं. इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कड़ा रुख अख्तियार किया. शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों के प्रमुख सचिवों के साथ वित्त, गृह और बाल व महिला विकास विभागों के केंद्रीय सचिवों की बैठक का आदेश दिया. घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के कार्यान्वयन में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद SC ने यह आदेश दिया.
जस्टिस एस आर भट और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि प्रत्येक जिले के लिए एक प्रोटेक्शन ऑफिसर है. प्रत्येक अधिकारी के पास 600 से अधिक मामले होंगे, जो एक व्यक्ति के लिए मैनेज करना असंभव है. यह खासकर तब होता है जब प्रोटेक्शन अधिकारियों को एक गहन कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए अनिवार्य किया जाता है, जिसमें अदालतों की सहायता के लिए लगातार ऑन-द-स्पोर्ट सर्वेक्षण और निरीक्षण करना शामिल है, वे पीड़ित, पुलिस और न्यायिक प्रक्रिया के बीच इंटरफेज हैं.
घरेलू हिंसा के पीड़ितों को राहत और सुरक्षा प्रदान करे सरकार
पीठ ने कहा, ‘इन परिस्थितियों में यह आवश्यक होगा कि केंद्र सरकार डीवी अधिनियम के कार्यान्वयन के सभी पहलुओं पर गहनता से विचार करे और घरेलू हिंसा के पीड़ितों को राहत और सुरक्षा प्रदान करे.’ जस्टिस एस आर भट और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि संघ और राज्य सरकारों के सचिवों की बैठकों में राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष का एक नामित व्यक्ति भी शामिल होगा.
तीन हफ्ते के अंदर करें मीटिंग
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी के माध्यम से केंद्र सरकार के सुझावों को स्वीकार करते हुए पीठ ने तीन सप्ताह के भीतर बैठक करने का आदेश दिया ताकि कार्यान्वयन संबंधी खामियों को दूर किया जा सके और यह तय किया जा सके कि घरेलू हिंसा के पीड़ितों के लिए अतिरिक्त सुरक्षा अधिकारी और वन-स्टॉप सेंटर हो सकते हैं या नहीं.
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भाटी ने सुझाव दिया कि राज्यों को प्रत्येक सुरक्षा अधिकारी को सौंपे गए मामलों की संख्या के आंकड़े सामने लाने चाहिए. प्रत्येक पीओ द्वारा देखे जाने वाले न्यायालयों की संख्या, प्रत्येक जिले में पीओ की वर्तमान संख्या और क्या उनकी संख्या में वृद्धि की आवश्यकता है, पीओ की आवश्यक संख्या का आकलन और डीवी अधिनियम 2005 के कार्यान्वयन पर राज्यों के उनके अनुभव के बारे में जानकारी एकत्र करना शामिल है.
पीठ ने दिया ये निर्देश
पीठ ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को एकीकृत महिला अधिकारिता कार्यक्रम ‘मिशन शक्ति’ के कार्यान्वयन पर एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया. अदालत ने कहा कि मंत्रालय इस बात की विशेष जानकारी देने का प्रयास करेगा कि प्रत्येक जिले में कितने ‘वन-स्टॉप सेंटर’ प्रस्तावित हैं. वर्तमान में कितने कार्यरत हैं. ऐसे केंद्रों का स्टाफिंग पैटर्न और वर्कलोड के आधार पर वास्तविक स्टाफ की आवश्यकता. ये सब एक सामान्य पोर्टल और डैशबोर्ड पर हो.
क्या है घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम?
घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 भारत की संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है. इसका उद्देश्य घरेलू हिंसा से महिलाओं को बचाना है और पीड़ित महिलाओं को कानूनी सहायता उपलब्ध कराना है. यह 26 अक्टूबर 2006 को लागू हुई थी.