150 साल बाद लाल किले पर ठोका दावा, बहादुर शाह जफर के रिश्तेदार की याचिका कोर्ट ने ठुकराई

नई दिल्ली: देश के राष्ट्रीय स्मारकों में से एक लाल किले (Red Fort) पर अपना मालिकाना हक होने की एक अनोखी याचिका दिल्ली हाई कोर्ट में दायर की गई थी. मुगल शासक बहादुर शाह ज़फ़र की पौत्र वधु सुल्ताना बेगम ने ये याचिका दायर की थी. सुल्ताना ने दिल्ली के ऐतिहासिक लालकिले पर क़ब्ज़े को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई, हालांकि अदालत ने इसे ख़ारिज कर दिया.67 साल की सुल्ताना बेगम आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र की पौत्र वधू हैं. सुल्ताना बेगम ने अपनी याचिका में कहा कि 1857 में ढाई सौ एकड़ में उनके पुरखों के बनवाए लाल किले पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने जबरन कब्जा कर लिया था.

कंपनी ने उनके दादा ससुर और आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को गिरफ़्तार कर रंगून जेल भेज दिया था. तब से लालकिले पर ब्रिटिश हूक़ूमत का क़ब्ज़ा रहा और आज़ादी के बाद से लालक़िला भारत सरकार के अंतर्गत है. दिल्ली हाईकोर्ट ने सुल्ताना बेग़म की याचिका ख़ारिज कर दी.

जस्टिस रेखा पल्ली ने कहा, “वैसे मेरा इतिहास बहुत कमजोर है, लेकिन आप दावा करती हैं कि 1857 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा आपके साथ अन्याय किया गया था तो अधिकार का दावा करने में 150 वर्षों से अधिक की देरी क्यों हो गई? आप इतने वर्षों से क्या कर रही थीं.”

सुल्ताना बेग़म के वक़ील विवेक मोर ने कहा, जब ये लोग विदेश से वापस लौटे तो जवाहरलाल नेहरू ने सुल्ताना बेग़म के पति मिर्ज़ा बेदर बख़्त की पेंशन बांध दी. उनके मरने के बाद ये पेंशन सुल्ताना बेग़म को मिल रही है पर ये बताइए कि 6000 रुपये महीने में क्या होता है वो बेहद ग़रीबी की ज़िंदगी जी रहे हैं.

सुल्ताना आखिरी मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर- II के पोते मिर्जा मोहम्मद बेदर बख्त की पत्नी हैं, 22 मई 1980 को बख्त की मौत हो गई थी.ये याचिका ख़ारिज कर दी गई है कोर्ट को पता है कि अगर कुछ कहा तो मुग़लो के दूसरे वंशज भी इस लड़ाई में कूद पड़ेंगे.

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