नई दिल्ली : देशभर में सरकारी जमीन पर अतिक्रमण पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है. SC ने कहा, ‘सभी प्रमुख शहर स्लम में बदल गए हैं.’ सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे अधिकारियों से पूरे भारत में अतिक्रमण के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने को कहा. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि अदालत की गई कार्रवाई की समीक्षा करेगी.शीर्ष अदालत ने कहा कि रेलवे अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता. यह सिर्फ राज्य सरकार की जिम्मेदारी नहीं है.यह 75 साल से चल रही एक दुखद कहानी है और हम अगले साल आज़ादी के 75 वें वर्ष का जश्न मना रहे हैं!.इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात में 5,000 झुग्गियों को गिराने का रास्ता साफ कर दिया जिससे 10,000 झुग्गीवासियों को बेदखल किया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे को अनाधिकृत कब्जाधारियों के खिलाफ तुरंत आपराधिक कार्रवाई शुरू करने का निर्देश दिया.SC ने रेलवे को निर्देश दिया कि वह उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करे जिन्होंने अतिक्रमण करने की अनुमति दी थी. अदालत ने गुजरात सरकार और रेलवे को संयुक्त रूप से पुनर्वास होने तक आवास के लिए 6 महीने तक हर झुग्गी के लिए प्रति माह 2,000 रुपये का मुआवजा प्रदान करने का निर्देश दिया और कि खोड़ी गांव जैसी ही शर्तें यहां भी लागू होंगी.यदि आवेदन किए जाते हैं और पात्रता पूरी की जाती है, तो झुग्गी के निवासी PMAY (प्रधान मंत्री आवास योजना) आवास के लिए पात्र होंगे
सुनवाई के दौरान जस्टिस एएम खानाविलकर ने कहा कि सभी बड़े शहर मलिन बस्तियों में बदल गए है. किसी भी शहर को देखें, चंडीगढ़ अपवाद हो सकता है, लेकिन चंडीगढ़ में भी समस्याएं हैं.ऐसा हर जगह हो रहा है. हम वास्तविकता की ओर बढ़े और सोचें कि समस्या को कैसे हल किया जाए. यह सुनिश्चित करने की प्राथमिक जिम्मेदारी है स्थानीय सरकार की है कि कि कोई अतिक्रमण न हो. स्थानीय सरकारों को जिम्मेदारी लेना शुरू कर देना चाहिए. 75 साल से चल रही यह दुखद कहानी है और हम अगले साल आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं.निगमों को अतिक्रमण हटाने की जिम्मेदारी लेने का समय आ गया है. अतिक्रमणकारी अन्य जिलों में चले जाते हैं और अन्य लोग पुनर्वास में भाग ले सकते हैं. यह दुखद कहानी है और अंतत: करदाताओं का पैसा नाले में जाएगा
इससे पहले SC ने गुजरात में रेलवे ट्रैक के साथ लगभग 5000 झुग्गियों को गिराने पर रोक लगा दी थी. केंद्र, पश्चिम रेलवे और गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया था. सूरत स्थित ‘उतरन से बेस्टन रेलवे झोपडपट्टी विकास मंडल’ द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले, जो रेलवे की जमीन पर रह रहे हैं, को अपूरणीय क्षति होगी, अगर उन्हें वैकल्पिक व्यवस्था प्रदान नहीं की जाती है.एक बार वे बेघर होने के बाद कारण, उनकी स्थिति विशेष रूप से COVID-19 महामारी के दौरान और अधिक दयनीय हो जाएगी.याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने अदालत को बताया था कि पश्चिम रेलवे ने सूरत और जलगांव के बीच 10 किलोमीटर की तीसरी रेलवे लाइन की योजना बनाई है और बिना किसी नोटिस और पुनर्वास के तोड़फोड़ का आदेश दिया है.याचिका में इन झुग्गियों को गिराने पर रोक लगाने की मांग की गई है.इसने संबंधित झुग्गीवासियों के पुनर्वास के लिए केंद्र और गुजरात सरकार सहित अधिकारियों को निर्देश देने की भी मांग की थी और कहा कि वे 60 से अधिक वर्षों से रेलवे की जमीन पर रह रहे हैं उनमें से अधिकांश के पास निवास के प्रमाण हैं.