पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शनिवार को न्यायपालिका पर अहम टिप्पणी की. उन्होंने किसी भी राजनीतिक पूर्वाग्रह से मुक्त न्यायपालिका की बात करते हुए कहा कि इसे बिल्कुल निष्पक्ष और ईमानदार होना चाहिए. न्यायपालिका लोकतंत्र, संविधान और लोगों के हितों की रक्षा के लिए भारत की नींव का बड़ा स्तंभ है. जिस समय ममता बनर्जी यह बात कह रही थी उस समय भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ और कलकत्ता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टी एस शिवज्ञानम भी मौजूद थे
पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, कोलकाता में राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी (पूर्वी क्षेत्र) द्वितीय क्षेत्रीय सम्मेलन के उद्घाटन पर सीएम बनर्जी ने कहा कि कृपया ध्यान रखें कि न्यायपालिका में कोई राजनीतिक पक्षपात न हो. अदालतें पूरी तरह से पक्षपात रहित, ईमानदार और पवित्र होनी चाहिए और लोगों को इसकी पूजा करनी चाहिए. न्यायपालिका एक मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और गिरजाघर की तरह है और यह लोगों द्वारा और लोगों के लिए है.
बुनियादी ढांचे के लिए 1000 करोड़ के खर्च का दावा
मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने राज्य में न्यायिक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 1,000 करोड़ रुपए खर्च किए हैं. राजारहाट न्यू टाउन में उच्च न्यायालय के नए परिसर के लिए जमीन उपलब्ध कराई है. राज्य में 88 फास्ट ट्रैक कोर्ट काम कर रहे हैं. पहले केंद्र सरकार ने इन अदालतों की स्थापना के लिए सहायता प्रदान की थी, लेकिन पिछले सात-आठ सालों से यह प्रावधान वापस ले लिया गया है. 88 फास्ट ट्रैक अदालतों में से 55 महिलाओं के लिए हैं और छह पॉक्सो अदालत भी हैं.
सीजेआई ने जजों को संविधान का स्वामी नहीं सेवक बताया
दूसरी ओर सीजेआई ने न्यायाधीशों को संविधान का स्वामी नहीं, सेवक बताया. सीजेआई ने न्यायपालिका को संविधान में निहित मूल्यों के विपरीत निर्णयों में हस्तक्षेप करने वाले न्यायाधीशों के व्यक्तिगत मूल्यों और विश्वास प्रणालियों के नुकसान के बारे में चेतावनी दी. उन्होंने कहा कि हम संवैधानिक व्याख्या के विशेषज्ञ हो सकते हैं, लेकिन न्यायपूर्ण समाज की स्थापना अदालत के संवैधानिक नैतिकता के दृष्टिकोण से ही होती है.