सरकार कहती है ‘जरूरी नहीं है आधार- वोटर आईडी लिंक करना’, लेकिन कानून कहां छोड़ता है इसकी गुंजाइश

भारत के चुनाव आयोग (Election Commission) ने मतदाता सूची में डुप्लीकेट मतदाता को हटाने के लिए 1 अगस्त से आधार (Aadhaar) को मतदाता पहचान पत्र (Voter IDs) से जोड़ने के लिए एक अभियान शुरू किया है. संसद में केंद्र सरकार ने कहा था कि यह प्रक्रिया स्वैच्छिक (Voluntary) होगी, लेकिन हाल के हफ्तों में, कई मतदाताओं को चुनाव अधिकारियों के फोन आए हैं. इसमें कहा गया है कि दोनों दस्तावेजों को जोड़ना जरूरी है, जिन मतदाताओं ने अभी तक इन दस्तावेजों को लिंक नहीं किया है, उन पर दबाव बनाने के लिए चुनाव अधिकारी सरकार के आधार-वोटर आईडी लिंकिंग स्वैच्छिक है आदेश का ही हवाला दे रहे हैं. यहां जानिए कैसे आधार-वोटर आईडी लिंक करना स्वैच्छिक होते हुए भी क्यों आसान नहीं है. 

आधार- वोटर आईडी लिंक करने का दबाव

12 अगस्त को राज्य चुनाव आयोग के ब्लॉक लेवल के अधिकारी का फोन दिल्ली के एक लेखक और सार्वजनिक नीति पेशेवर मेघनाद एस (Meghnad S) को आया था. लेखक मेघनाद ने बताया, “अधिकारी ने मुझसे कहा कि अगर मैं ऐसा नहीं करता हूं, तो मेरा मतदाता पहचान पत्र एक साल में रद्द कर दिया जाएगा.” आधार (Aadhaar) भारतीय निवासियों को उनके बायोमेट्रिक डेटा (Biometric Data) के आधार पर आवंटित 12 अंकों की विशिष्ट (Unique) पहचान संख्या से बताता है. जब मेघनाद ने अधिकारी से पूछा कि इस प्रक्रिया को अनिवार्य क्यों बनाया गया है, तो उन्हें बताया गया कि  “ऊपर से आदेश” आया है.

लेखक मेघनाद ने अपनी और इस अधिकारी के बीच आधार और वोटर आईडी लिंक करने की बातचीत को ट्विटर पर पोस्ट कर दिया. इस पोस्ट के बाद  दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय से एक एक व्यक्ति ने उनसे संपर्क किया. इस व्यक्ति ने उन्हें बताया कि आधार और वोटर आईडी लिंक करने की प्रक्रिया स्वैच्छिक है और उनका  मतदाता पहचान पत्र रद्द नहीं किया जाएगा. लेखक ने ब्लॉक स्तर के अधिकारियों को इस मामले में भ्रम की स्थिति पैदा करने के लिए जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि उन्हें “फिर से प्रशिक्षित करने की जरूरत है.”

दरअसल यह ब्लॉक स्तर के अधिकारियों की गलती नहीं है. यह प्रक्रिया ही  एक ऐसे कानून से चलती है जिसने नागरिकों के लिए अपने आधार नंबर को अपने वोटर आईडी से जोड़ने से बचना लगभग असंभव कर दिया है. इसके अलावा ब्लॉक स्तर के अधिकारियों पर अपने वरिष्ठ अधिकारियों का इन दोनों दस्तावेजों को तेजी से जोड़ने का दबाव भी है.

कानूनी तंत्र

बीते साल दिसंबर में केंद्र सरकार विपक्ष के भारी विरोध के बीच इस लिंकिंग को सक्षम  करने के लिए चुनावी कानून संशोधन (Electoral Laws -Amendment)  विधेयक लेकर आई थी. तब  विपक्ष ने तर्क दिया कि यह कदम निजता (Privacy) के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करेगा. हालांकि उसी वक्त कानून मंत्री किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) ने दावा किया था कि यह प्रक्रिया स्वैच्छिक होगी. इस मुद्दे पर भारत का कानून कुछ और ही सलाह देता है. कानून कहता है कि मतदाता सूची (Electoral Roll) में नाम शामिल करने के लिए आने वाले  किसी भी आवेदन को अस्वीकार नहीं किया जाएगा और न ही किसी व्यक्ति के नाम को आधार संख्या (Aadhaar Number) न देने या बता पाने पर मतदाता सूची से बाहर किया  जाएगा.” हालांकि इसके साथ ही यह भी जोड़ दिया गया कि आधार न दे पाने वाले आवेदक को इसके ‘’पर्याप्त कारण’’ बताने होंगे.  

हालांकि ये ‘पर्याप्त कारण’ क्या हो सकते हैं? सरकार ने यह साफ नहीं किया है. सरकार को इस बात को साफ करना चाहिए कि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से किन वजह से आधार देने को बाध्य नहीं है. केंद्र सरकार ने जून में कानून को लागू करने के लिए नियमों को अधिसूचित किया. नियमों के तहत इसमें इकलौता “पर्याप्त कारण” जिसके तहत कोई व्यक्ति अपने आधार को चुनावी कार्यालय में जमा करने से बच सकता है वो यह है कि उसके पास आधार ही न हो. हालांकि  ऐसे मामलों में 11 अन्य पहचान प्रमाण (Identity Proofs), जैसे ड्राइविंग लाइसेंस और पासपोर्ट, का इस्तेमाल मतदाता पहचान पत्र को प्रमाणित करने के लिए किया जा सकता है. यहां तक ​​कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को 4 जुलाई को यह निर्देश भेजे गए कि आधार जमा करना स्वैच्छिक होगा. इसमें ये भी कहा गया कि वोटर आधार संख्या न होने पर ही इसे देने से इंकार कर सकता है.

आधार को बारीकी से ट्रैक करने वाले संगठन आर्टिकल 21(Article 21) की वकील और ट्रस्टी मानसी वर्मा (Maansi Verma) ने कहा, “नियमों और फॉर्मों को पढ़ने वाला कोई भी अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुंचेगा कि आधार और वोटर आईडी लिंकिंग जरूरी है.” इसके अलावा नियमों के तहत इस लिंकिंग प्रक्रिया को पूरी करने के लिए 1 अप्रैल, 2023 की कट-ऑफ तारीख दी गई, लेकिन अगर कोई आधार या किसी अन्य पहचान पत्र को वोटर आईडी से लिंक करने में असफल रहता है तो क्या होगा यह साफ नहीं किया गया  है. निर्वाचन अधिकारियों को निर्देश में कहा गया है कि यदि वे अपना आधार विवरण जमा नहीं करते हैं तो उन्हें मतदाता सूची से नाम नहीं हटाना चाहिए. ट्रस्टी वर्मा ने कहती कि आधार और वोटर आईडी पर बने इस भ्रम से सरकार को फायदा होता है: “अगर लोग इस बारे में अनिश्चित हैं कि आधार- वोटर आईडी से न जोड़ने पर क्या होगा, तो वे दोनों दस्तावेजों को जोड़ देंगे.”

मतदाता सूची से नाम हटाने की चेतावनी

देशभर के मतदाताओं को चुनावी अधिकारियों के फोन आते रहते हैं कि अगर वे अपने मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने में विफल रहते हैं तो उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया जाएगा. कुछ मामलों में, अधिकारियों के पास पहले से ही मतदाताओं के आधार नंबर थे और उन्होंने केवल इसकी पुष्टि करने के लिए लोगों को फोन किए. दिल्ली के  सुदीप्तो घोष (Sudipto Ghosh) के पास भी ऐसा ही फोन आया थ. तब उन्होंने कहा, “जब मैंने उनसे पूछा कि उन्हें मेरा नंबर कैसे मिला,तो उन्होंने मुझे बताया कि बहुत से लोग अपना एपिक (Electors Photo Identification Card-EPIC) बनाने के लिए आधार नंबर का इस्तेमाल करते हैं.” हालांकि, घोष इस बात से हैरान थे कि उन्होंने अपने आधार का इस्तेमाल कर अपना वोटर आईडी नहीं बनाया था. तो फिर उनके पास फोन कैसे आ गया. घोष बताया,, “मैंने उनसे कहा कि वे मेरा आधार नंबर काट दें.” हालांकि घोष को ये नहीं पता चल पाया कि अधिकारी ने उनकी बात मानी या नहीं.

लक्ष्य और समय सीमा

ब्लॉक स्तर के अधिकारियों ने कहा कि वे केवल वही कर रहे थे जो उनके वरिष्ठों ने उनसे करने को कहा था और उन्हें इस काम को पूरा करने के लिए लक्ष्य दिए गए थे. एक अधिकारी ने कहा, ‘हमें अगस्त के अंत तक 100 फीसदी लिंकिंग करने का निर्देश दिया गया है. चुनाव आयोग के ब्लॉक लेवल के अधिकारियों को उस वक्त और दबाव पड़ा जब उन्हें लगा कि उनके उच्च अधिकारी आधार से वोटर आईडी लिंक करने के काम को बेहद गंभीरता से ले रहे हैं. इसका एक उदाहरण 19 अगस्त को सामने आया जब असम चुनाव आयोग ने ट्वीट किया. इस ट्वीट में में एक ब्लॉक स्तर के अधिकारी को बधाई दी गई थी, जिन्होंने अपने क्षेत्र में मतदाता पहचान पत्र के साथ आधार को जोड़ने का 100 फीसदी लक्ष्य हासिल किया था.

एक अन्य अधिकारी ने बताया कि कैसे सीनियर अधिकारियों ने इस काम के लिए दबाव बनाया. उन्होंने बताया कि उनके सीनियर अधिकारियों ने विभिन्न ब्लॉक अधिकारियों के काम की प्रगति की एक दिन ही में तीन बार लिस्ट डालीं. इस  ब्लॉक लेवल के अधिकारी का कहना था कि  यदि कोई अधिकारी इस काम में सक्रिय नहीं हो रहा है, तो सीनियर निजी संदेश भेजकर कारण पूछते हैं. इस अधिकारी ने कहा, “कभी-कभी हमें लोगों से  झूठ भी बोलना पड़ता है और कहना पड़ता है कि आपका वोटर आईडी हटा दिया जाएगा.इससे लोग अपने आधार नंबर साझा कर सकते हैं.” इस अधिकारी ने आगे कहा, “यदि वे अपना आधार नंबर साझा नहीं करते हैं, तभी  हम कोई अन्य पहचान का सबूत मांगते हैं

लिंक करने की परेशानी

कई आधार और डिजिटल अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस लिंकिंग को लेकर चिंता जताई है. सबसे पहली बात तो ये साफ ही नहीं है कि ये परेशानी किस हद तक है.. आर्टिकल 21 की वकील और ट्रस्टी मानसी वर्मा ने बताया, “हम नहीं जानते कि मतदाता सूची में कितने डुप्लिकेट वोटर मौजूद हैं.” उन्होंने आगे बताया, “फिर, यह भी पता नहीं है कि आधार को लिंक करने से यह परेशानी कैसे हल होगी.यहां तक ​​कि जब आधार में भी डुप्लीकेट हैं.” गौरतलब है कि  नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller And Auditor General) की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि डुप्लीकेट होने के कारण करीब पांच लाख आधार कार्ड हटा दिए गए थे. वकील वर्मा सवाल करती है कि तो डुप्लीकेट वोटर आईडी हटाने का आधार आधार दस्तावेज कैसे हो सकता है?” जब वहीं डुप्लीकेट हैं तो. 

यह भी आशंका जताई जा रही है कि इससे मतदाताओं का मताधिकार छीन लिया जाएगा. इससे पहले, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में मतदाता पहचान पत्रों को आधार संख्या से जोड़ने के बाद लगभग 55 लाख मतदाताओं ने अपने नाम मतदाता सूची से हटे हुए पाए थे. नतीजा ये हो सकता है कि इस लिंकिंग की वजह से वास्तविक मतदाताओं के नाम भी वोटर लिस्ट से हटाए जा सकते हैं. साल  2020 के एक अध्ययन में पाया गया कि जब नकली राशन कार्ड धारकों को बाहर करने के लिए राशन कार्डों को आधार संख्या से जोड़ा गया, तो बाहर जाने वाले 90 फीसदी नाम वास्तविक राशन कार्ड धारकों के थे. 

इसके अलावा, सुरक्षा संबंधी चिंताएं भी हैं, क्योंकि भारत में डेटा संरक्षण कानून नहीं है. इस वजह से  मतदाता प्रोफाइलिंग और लक्षित प्रचार (Targeted Campaigning) के लिए इस जानकारी के दुरुपयोग की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. आधार और मतदाता पहचान पत्र को जोड़ने से नागरिकों के मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन हो सकता है. 24 अगस्त 2017 को 9 जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताया है. पीठ ने कहा था कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है.

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