मुश्किल काम है…इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट क्यों पहुंचा SBI, मांगी कुछ दिन की मोहलत!

15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए लाए गए इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार दे दिया था. अपने फैसले में कोर्ट ने एसबीआई से 6 मार्च तक उन लोगों की जानकारी चुनाव आयोग को देने की मांग की थी जिन्होंने उन बॉन्ड्स को खरीदा और फिर जिन राजनीतिक दलों ने उसको भुनाया.

अब भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है कि इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में 6 मार्च की डेडलाइन बढ़ा दी जाए. सर्वोच्च अदालत ने एसबीआई से कहा था कि वह 12 अप्रैल 2019 के बाद खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को दे और चुनाव आयोग फिर अगले एक हफ्ते में यानी 13 मार्च तक इसे अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर पब्लिश करे.

सुप्रीम कोर्ट चाहती है कि ये लोगों को मालूम हो कि किस राजनीतिक दल को किस व्यक्ति या कंपनी ने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये कितना चंदा दिया. पर लगता ये है कि अभी इसके लिए लंबा इंतजार करना पड़ेगा. आज 5 तारीख है. 6 मार्च तक एसबीआई को पूरी जानकारी देनी थी मगर एसबीआई इस जानकारी को जुटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए 3 हफ्ते के समय को नाकाफी मान रही है और समयसीमा 30 जून तक बढ़ाने की अपील दायर की है.

एसबीआई ने क्या तर्क गिनवाए?
पहला – स्टेट बैंक का कहना है कि किसने-कितने का चंदा किसको दिया, इसका पता लगाना और सही से उसका मिलान अपने आप में समय लगने वाला काम है और एक चूंकि यह एक जटिल प्रक्रिया है, अदालत को उसे और समय देना चाहिए.

एसबीआई के मुताबिक उसको 22 हजार 217 इलेक्टोरल बॉन्ड को डिकोड करना होगा. एसबीआई का कहना है कि इसके लिए स्टेट बैंक को इनको डिकोड, कंपाइलिंग से ललेकर फिर उसका मिलान करना होगा.

इस तरह कुल 44 हजार 434 दस्तावेजों का जांचना होगा. इसमें 22 हजार 217 वैसे दस्तावेज हैं जिसमें बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी है जबकि इसी की तर्ज पर 22, 217 ऐसे दस्तावेज हैं जिनमें उन बॉन्ड्स को भुनाने वालों की जानकारियां हैं.

दूसरा – एसबीआई की मानें तो इस स्कीम में चंदा देने वालों की पहचान को गुमनाम रखा गया है. ऐसे में, इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान उजागर करने के लिए ‘डिकोडिंग’ की प्रक्रिया से उसे गुजरना होगा और फिर किस राजनीतिक दल ने उस बॉन्ड का भुनाया, इसका जारी किए गए बॉन्ड से मिलान एक जटिल प्रक्रिया होगी. डिकोडिंग के दौरान कुछ व्यवहारिक अड़चनों का हवाला देते हुए एसबीआई सुप्रीम कोर्ट से इस डेडलाइन को 30 जून तक बढ़वाना चाहती है.

तीसरा – सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में एसबीआई ने 2018 के इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर जानकारी दी है कि इस स्कीम को अमल में लाने के लिए एक खास एसओपी तैयार की गई थी. इसके मुताबिक देश की केवल 29 एसबीआई शाखाओं ही में बॉन्ड खरीदा और उसको भुनाया जा सकता था.

एसबीआई ने यहीं एक पेंच गिनवाया है. स्टेट बैंक का कहना है कि एसबीआई के 29 शाखाओं में बॉन्ड की खरीद-बिक्री होती थी और उस पूरी खरीदारी की जानकारी एक एक जगह नहीं रखी जाती थी. साथ ही, बॉन्ड को जारी करने से जुड़ी जानकारी और बॉन्ड भुनाने से संबंधित जानकारी को दो अलग-अलग खांचे (साइलोज) में रखा जाता था. लिहाजा, उसको ‘डिकोड, कंपाइल और कंपेयर’ करना एक जटिल काम है.

चौथा – एसबीआई ने एक और अड़चन गिनवाई है. स्टैट बेंक के मुताबिक राजनीतिक दल की ओर से बॉन्ड को भुनाने के समय जो असल बॉन्ड था और उसका पे-इन स्लिप, दोनों को एक सीलबंद कवर में कर के एसबीआई के मुख्य ब्रांच, मुंबई में भेजा जाता था. इसलिए कुछ डेटा फिजिकल मोड में हैं और कुछ डिजिटल मोड में. ऐसे में, एसबीआई को अच्छे से जानकारी जुटाने और उसको कंपाइल करने में थोड़ा समय लगेगा.

SBI की याचिका पर प्रतिक्रियाएं
सुप्रीम कोर्ट में एसबीआई की ओर से समयसीमा बढ़ाने वाली याचिका के दाखिल होने के फौरन बाद जगदीप छोकर (एडीआर के फाउंडर सदस्य) ने सोशल मीडिया के जरिये कहा कि चुनावी राजनीति में पारदर्शिता को लेकर काम करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक (एडीआर) एसबीआई की याचिका का विरोध करेगी. इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ सबसे मुखर तरीके से एडीआर ही ने लड़ाई लड़ी थी.

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखने वाले वकील प्रशांत भूषण ने डेडलाइन बढ़ाने वाली एसबीआई की मांग पर मोदी सरकार को निशाने पर लिया है. प्रशांत भूषण ने कहा है कि एसबीआई कि इस अर्जी का उनको पहले ही से अंदाजा था.

बकौल भूषण ‘मोदी सरकार ने एसबीआई के जरिये सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदान दायर कराया है और इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये किस डोनर ने राजनीतिक दलों को कितने चंदे दिए, इसका खुलासा करने के लिए समय मांगा है.’

भूषण के मुताबिक डोनर्स की लिस्ट सार्वजिनिक होने से कई रिश्वत देने वालों और उसके बदले कॉन्ट्रैक्ट या फिर फेवर हासिल करने वालों का खुलासा होगा और सरकार इसी से डरी हुई है.

इलेक्टोरल बॉन्ड और सुप्रीम कोर्ट का फैसला
पिछले महीने पांच जजों की एक संविधान पीठ ने मोदी सरकार की महत्त्वकांक्षी चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक ठहराते हुए उस पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी. इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चुनावी चंदा देने वाली व्यवस्था थी जिसको 2017 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरूण जेटली लेकर आए थे.

इस योजना के तहत डोनर (दान देने वाला) केवल और केवल भारतीय स्टेट बैंक से बांड खरीद कर अपनी पसंद की पार्टी को दे सकता था. इस पूरी प्रक्रिया में दान देने वाली की पहचान गोपनीय रखने की बात थी मगर विपक्ष ने सवाल उठाया कि ये कैसी गोपनीयता है, जहां सरकार को तो मालूम है कि कौन किसको क्या चंदा दे रहा लेकिन विपक्ष, आम जनता को इसकी भनक तक नहीं.

कोर्ट ने इस कानून को सूचना के अधिकार का उल्लंघन माना और 2019 के बाद किसको, किसने चुनावी बॉन्ड के जरिये कितने का चंदा दिया, ये तीन हफ्ते के भीतर सार्वजनिक करने को कहा. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विपक्षी पार्टियों ने दिल खोलकर स्वागत किया था.

विपक्ष को हमेशा इस बात से आपत्ति रही कि इलेक्टोरल बॉन्ड के अस्तित्त्व में आने के बाद इससे राजनीतिक दलों को चंदा मिला, उसका करीब 55 फीसद पैसा केवल और केवल सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को मिला.

अब आगे क्या?
अगर सुप्रीम कोर्ट एसबीआई को मोहलत दे देती है तो इसका मतलब ये होगा कि चुनावी चंदा देने वाले का नाम और किसको वह रकम मिली, ये लोकसभा चुनाव के बाद ही मालूम चल पाएगा.

ध्यान रहे 30 जून तक भारत में लोकसभा चुनाव पूरा हो जाएगा जबकि सुप्रीम कोर्ट इस विवादित चुनावी बॉन्ड योजना का निपटारा आम चुनाव से पहले किसी हाल में करना चाहती थी.

इसीलिए सर्वोच्च अदालत ने पिछले महीने ऐतिहासिक फैसला भी सुनाया. मगर फैसले के साथ जो बातें सर्वोच्च अदालत ने कहीं, वह अब तक पूरी नहीं की जा सकी हैं.

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