सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बीआर गवई रविवार को महाराष्ट्र पहुंचे थे. उनके सम्मान में महाराष्ट्र और गोवा बार काउंसिल ने समारोह का आयोजन किया था. हैरानी की बात है कि उनकी अगवानी में राज्य के मुख्य सचिव, डीजीपी या मुंबई पुलिस आयुक्त में से कोई नहीं पहुंचा था. इस पर उन्होंने नाराजगी जताई थी. इसे लेकर सोमवार को दिल्ली में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, आज सुबह मुझे बहुत ही महत्वपूर्ण बात की जानकारी हुई. ये मेरे बारे में नहीं है. देश के प्रधान न्यायाधीश और प्रोटोकॉल को बहुत महत्व दिया जाता है. यह व्यक्तिगत नहीं था, यह उनके पद के लिए था. यह बात सभी को ध्यान रखनी चाहिए. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि वह भी एक तरह से प्रोटोकॉल के पीड़ित हैं. अपने संबोधन में उन्होंने कहा, आपने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की तस्वीर देखी होगी लेकिन उपराष्ट्रपति की नहीं. जब मेरा कार्यकाल पूरा हो जाएगा तो मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि मेरे उत्तराधिकारी के पास एक तस्वीर हो. मैं नौकरशाहों का ध्यान आकर्षित करने के लिए मौजूदा सीजेआई का वास्तव में आभारी हूं. प्रोटोकॉल का पालन करना जरूरी है.
मुझे वर्तमान सर्वोच्च न्यायालय पर पूरा भरोसा
उपराष्ट्रपति ने आज कहा, अब 1991 के के. वीरास्वामी फैसले पर फिर से विचार करने का समय आ गया है. ये अभेद्य आवरण 1991 के. वीरास्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बना है. अब बदलाव का समय आ गया है. मुझे वर्तमान सर्वोच्च न्यायालय पर पूरा भरोसा है, जो प्रतिष्ठित और ईमानदार लोगों का है. बहुत कम समय में वर्तमान मुख्य न्यायाधीश ने दिखा दिया है कि आम लोगों के लिए चीजें सुखद हैं. न्यायपालिका की रक्षा करने की जरूरत है. हमें ये तय करना होगा कि हमारे जजों को कमजोर न बनाया जाए क्योंकि वो निडर होकर फैसले लेते हैं. वो सबसे कठिन काम करते हैं.
मजबूत न्यायिक प्रणाली जरूरी है
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, लोकतंत्र के अस्तित्व और विकास के लिए मजबूत न्यायिक प्रणाली जरूरी है. अगर किसी घटना की वजह से ये सिस्टम कुछ हद तक संदिग्ध होता है तो ये हमारा दायित्व है कि हम उसे स्पष्ट करें. दुनिया भर में जांच कार्यपालिका का अधिकार क्षेत्र है. उसका फैसला न्यायपालिका करती है. किसी जज को हटाने के लिए देश में जो व्यवस्था है, उसकी जांच करने के बाद हैरान हूं. समिति का गठन वैध रूप से केवल स्पीकर या सभापति द्वारा ही किया जा सकता है. क्या देश में हम हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के प्रशासनिक कार्य की कीमत पर इतना समय निवेश करने का जोखिम उठा सकते हैं? मुझे अभी भी हैरानी है कि जांच करते समय तीन न्यायाधीशों की समिति ने लोगों से इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बरामद किए. यह एक गंभीर मुद्दा है. यह कैसे किया जा सकता है? मैं आपको केवल यह सुझाव दे रहा हूं.
आज तक कोई एफआईआर नहीं हुई
उपराष्ट्रपति ने कहा, हम एक कटु सच्चाई से रूबरू हैं. लुटियन दिल्ली में एक जज के घर के लोगों ने नोट और नकदी जला दी. आज तक कोई एफआईआर नहीं हुई. हमारे देश में कानून का शासन है. कानून का शासन समाज की नींव है. लोकतंत्र को मुख्य रूप से तीन पहलुओं से परिभाषित किया जाना चाहिए, अभिव्यक्ति, संवाद और जवाबदेही. किसी व्यक्ति या किसी संस्था को गिराने का सबसे पक्का तरीका है उसे जांच से दूर रखना. इसलिए अगर वास्तव में हम चाहते हैं कि लोकतंत्र फले-फूले तो ये जरूरी है कि हर संस्था और हर व्यक्ति को जवाबदेह ठहराएं और कानून के अनुसार काम करें. मैं एक मूकदर्शक के रूप में नहीं बल्कि न्यायपालिका के एक सिपाही के रूप में विचार कर रहा हूं.
मैं किसी पर कोई आरोप नहीं लगा रहा हूं
उन्होंने कहा, इस समय एक बड़ा बदलाव हो रहा है. न्यायिक परिदृश्य बेहतर के लिए बदल रहा है. निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति खन्ना ने जवाबदेही और पारदर्शिता के मामले में बहुत उच्च मानक स्थापित किए हैं. जिस घटना का मैंने उल्लेख किया है, उसके लिए उनकी सराहना की जानी चाहिए. मैं किसी व्यक्ति की बेगुनाही को सबसे अधिक महत्व देता हूं, जब तक साबित न हो जाए, तब तक हमें बेगुनाही माननी चाहिए. मैं किसी पर कोई आरोप नहीं लगा रहा हूं लेकिन मैं बस इतना ही कह रहा हूं कि जब राष्ट्रीय हित की बात आती है तो हम अंदरूनी या बाहरी लोगों में विभाजित नहीं हो सकते.