जजों पर केस चलाने के लिए मंजूरी के फैसले पर पुनर्विचार का वक्त- उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर फिर से विचार करने का समय आ गया है, जिसमें कहा गया था कि देश की शीर्ष अदालत और हाई कोर्ट के जजों के खिलाफ केस चलाने के लिए पहले से मंजूरी की जरूरत होगी. जस्टिस यशवंत वर्मा केस पर धनखड़ ने कहा कि क्या यह केस दब जाएगा, लोग इसका इंतजार कर रहे हैं. साथ ही धनखड़ ने हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से जुड़े कथित कैश बरामदगी मामले में एफआईआर दर्ज करने में देरी पर भी सवाल उठाया. उन्होंने इस मामले की जांच कर रही 3 जजों की आंतरिक समिति (3 Judge in-House Committee) की ओर से गवाहों से इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त करने के कदम को भी गंभीर मुद्दा करार दिया. उन्होंने कहा, यह एक गंभीर मसला है. आखिर ऐसा कैसे किया जा सकता है?

इसके पीछे बड़ा शार्क कौनः धनखड़
कैश मामले में वैज्ञानिक आपराधिक जांच (Scientific Criminal Investigation) की जरूरत पर बल देते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि देश में हर कोई सोच रहा है कि क्या यह केस दब जाएगा, क्या धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में चला जाएगा.

उन्होंने देरी पर सवाल करते हुए कहा, “आपराधिक न्याय प्रणाली को कैसे संचालित नहीं किया गया, जैसा कि हर दूसरे शख्स के लिए किया जाना चाहिए था? यह मामला ऐसा है जिसका लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, पैसे का स्रोत, इसका मकसद, क्या इसने न्यायिक प्रणाली को प्रदूषित किया है? इसके पीछे का बड़ा शार्क कौन हैं? हमें हर चीज पता लगाने की जरूरत है. पहले ही इस मसले पर 2 महीने बीत चुके हैं और मुझसे पहले के लोगों से बेहतर कोई नहीं जानता. मामले की जांच तेजी से होनी चाहिए.”

SC ने कब दिया था मंजूरी से जुड़ा फैसला
जस्टिस वर्मा का करीब 2 महीने पहले मार्च में तब इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया था, जब कथित तौर पर नई दिल्ली में उनके सरकारी आवास से भारी मात्रा में नकदी बरामद की गई थी, तब वह दिल्ली हाई कोर्ट के जज के रूप में कार्यरत थे.

राजधानी दिल्ली में पुस्तक विमोचन समारोह को संबोधित करते हुए, धनखड़ ने कहा कि के. वीरास्वामी फैसले पर अब पुनर्विचार करने का वक्त आ गया है. साल 1991 का के. वीरास्वामी बनाम भारत संघ केस में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिया गया एक अहम फैसला है, जो हाई कोर्ट के जजों को भ्रष्टाचार-रोधी कानूनों के दायरे में लाने से संबंधित है और न्यायिक आजादी के महत्व को रेखांकित करता है. शीर्ष अदालत ने तब अपने फैसले में यह रेखांकित किया था कि जज वास्तव में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act) के तहत जनता की सेवक की तरह हैं, लेकिन उसने यह भी कहा कि किसी जज पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी की आवश्यकता होगी.

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