टिकैत के आंसू देख भावनाओं ने मारा हिलोर, क्‍या हिंदू-क्‍या मुस्लिम, नई सुबह की उम्‍मीद में दौड़े आए किसान

किसान एकता जिंदाबाद… बाबा टिकैत अमर रहे… राकेश टिकैत जिंदाबाद. किसी के लिए ये नारे हैं तो किसी के लिए शोर. गुरुवार की शाम जो गाजीपुर बॉर्डर वीरानी की ओर बढ़ रहा था, वह शुक्रवार की रात होते-होते फिर से गुलजार हो गया.

गाजीपुर बॉर्डर पर रात के 11 बज रहे हैं. एनएच पर फ्लाईओवर के नीचे भी और ऊपर भी… लगातार नारे लग रहे हैं. हर 10-5 मिनट पर कोई न कोई गाड़ी, ट्रैक्‍टर पर लोग भर के आ रहे हैं.

कार हो या फिर ट्रैक्‍टर ट्रॉली… वाहनों में साउंड बॉक्‍स तो लगे ही लगे हैं. उनमें या तो देशभक्ति के गाने बज रहे हैं या फिर किसान एकता के नारे लग रहे हैं. कुछ वाहनों में रिकॉर्डेड नारे भी बज रहे हैं. 26 जनवरी को ट्रैक्‍टर रैली में हुई हिंसा (Tractor rally Violence) के बाद आंदोलन खत्‍म होने की शंका-आशंकाओं पर जिस तरह गुरुवार को मीडिया का हुजूम यहां पहुंचा था, उसके मुकाबले संख्‍या काफी कम दिख रही.

गुरुवार की शाम ऐसा लग रहा था, जैसे आंदोलन अपने अवसान पर है और जल्‍द ही गाजीपुर पुल खाली करा लिया जाएगा. लेकिन शुक्रवार को तो तस्‍वीर ही बदल चुकी है. बॉर्डर फिर से गुलजार हो चुका है. किसानों का आना जारी है. भारतीय किसान यूनियन के राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता के आंसुओं ने ‘कमाल’ कर दिखाया है. लगातार पहुंच रहे किसान भी इस बात को स्‍वीकार रहे हैं.

थोड़ा आगे साइकिल लेकर पहुंचे एक युवक को लोगों ने घेर रखा है. पास जाने पर पता चलता है कि वह उड़ीसा से झारखंड, बिहार होते हुए साइकिल से ही यहां पहुंचा है. किसानों को सपोर्ट करने. 12 जनवरी को वह उड़ीसा के राउरकेला से चला था और 29 की रात 11:40 बजे गाजीपुर बॉर्डर पहुंच गया.

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”भई हम टिकैत के गांव से हैं और अब यहां ‘टिकने’ ही आए हैं”
पुल पर संयुक्‍त किसान मोर्चा के मंच की ओर बढ़ते हुए 10-12 युवक मिलते हैं. कुछ मेरठ से हैं और कुछ टिकैत के शहर मुजफ्फरनगर से. उनमें से कुछ हाथ में तिरंगा लिए फोटो खिंचवाने में लगे हैं. कुछ युवाओं से बातचीत के दौरान पता चलता है कि वे पहले भी यहां आकर जा चुके हैं. राजू चौधरी और अमित चौधरी बताते हैं कि बाबा टिकैत के गांव से हैं और यहां अब टिकने ही आएं है. अब वापस नहीं जाएंगे. बाकी युवक भी उसकी हां में हां मिलाते हैं.

रात के 12:30 बजने वाले हैं. करीब बीसेक कदम और आगे बढ़ते हैं तो मंच के ठीक बगल में पु‍ल की दूसरी साइड खड़ी कार में गाना बजने लगता है- मेरा रंग दे बसंती चोला… युवकों की टोली जुटती चली जाती है और सभी इस गाने पर झूम रहे होते हैं. हम डिवाइडर पार कर मुख्‍य मंच के पास पहुंचते हैं, जहां से टिकैत के आंसुओं ने गुरुवार शाम अपना ‘जादू’ दिखाया.

उनके आंसू देख नींद ही नहीं आई, रात 70 परसेंट घरों में टीवी बंद ही नहीं हुआ
रात के करीब 01:15 होने को हैं. कुछ 7-8 लोग अपना टेंट-वेंट सेट कर रहे हैं. पूछने पर बताया कि वे संभल जिले से आए हैं. पता चला कि कुछ ही घंटे पहले यहां पहुंचे हैं. कुलदीप सिंह बताते हैं कि गांव से पहले भी लोग आए, रहे, गए, लेकिन वे लोग पहली बार आए हैं. क्‍यों आएं… के सवाल पर वही कारण पता चलता है- टिकैत के आंसू.

गुरुवार की रात का जिक्र करते हुए वे कहते हैं कि 70 परसेंट घरों में तो टीवी बंद ही नहीं हुआ. उनके आंखों में आंसू देख नींद ही नहीं आई. सुबह सब जुटे, प्‍लान बनाया और जो काम जहां पड़ा था, वहीं छोड़ कर फिर निकल लिए. आपलोग क्‍या भारतीय किसान यूनियन से जुड़े हो?… इस सवाल पर वे कहते हैं, नहीं. हमलोग सिर्फ किसान हैं और केवल किसान होने के नाते यहां पहुंचे हैं.

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वोट किसको दिया था…. के जवाब में कहते हैं- गलती हो गई. सपा-बसपा से हटके इस उम्‍मीद में वोट किया कि चलो सरकार हमारी सुनेगी. लेकिन नहीं, ये तो किसानों की सुनती ही नहीं. साल का बिल 10 हजार आता था, अब 18 हजार आने लगा. बिना दुधारू पशु बेचने नहीं देते. पालने का खर्चा भारी पड़ रहा. कर्जा माफी के चक्‍कर में इधर-उधर खूब दौड़े, लेकिन इत्‍ते साल में डबल हो गया.

बता दें कि 2017 से पहले संभल जिले का गन्नौर विधानसभा क्षेत्र सपा का गढ़ हुआ करता था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर में वहां पहली बार कमल खिला और अजीत कुमार राजू वहां विधायक हैं.

”अभी हम 6 गाड़ी ही पहुंचे हैं…12 मुस्लिम गांवों से लोग चले हैं, जनानियां भी आ रहीं”
रात के 2 बजकर 10 मिनट हो रहे हैं. लंगर सिमट चुका है, लेकिन चाय के स्‍टॉल पर युवा लगातार सेवा दे रहे है. युवा तो युवा… महिलाएं और बुजुर्ग भी जगे हुए हैं. टहल रहे हैं. टिकैत के जिले मुजफ्फरनगर में पड़ता है बुढ़ाना तहसील. यहां के रियावली नगला गांव से 6 ट्रैक्‍टरों में भर कर काफी लोग पहुंचे हैं.

”मोहम्‍मद खलील नाम हुआ हमारा. 65 बरस उमर हो गई… खड़े होने के लिए लाठी की जरूरत ना है. सीधे खड़े हैं तन के… गोली खांगे तो खांगे, लेकिन कानून वापस कराए बिना वाप्‍पस गांव न जांगे.”

एक बुजुर्ग आगे बढ़ते हुए हमसे बोले. आगे कहा- 24 गांव से लोग जुटे थे हमारे वहां. रात में सूचना हुई, सुबह सब इकट्ठा हो गए और चल पड़े. वे कहते हैं कि अभी कहां… अभी तो जनानी (औरतें) भी आ रही हैं, पीछे से. फिर देखना.

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महापंचायत की सूचना कैसे पहुंची? इस सवाल पर मोहम्‍मद राशिद बताते हैं कि राकेश टिकैत जी को वीडियो में रोते देखा. मोबाइल से लेकर मुनादी तक… सूचना गुरुवार रात को ही फैल गई. शुक्रवार को मुजफ्फरनगर में महापंचायत हुई. यह करीब दो बजे के बाद खत्‍म हुई होगी. तय हो गया कि सरकार-पुलिस किसानों को कमजोर करने वली है, इ‍सलिए अब चलना है… और निकल पड़े.

बाबा टिकैत की वह ‘ब्रांड तस्‍वीर’ और हुक्‍के की गुड़गुड़ के बीच डेमोक्रेसी डिबेट
मुख्‍य मंच के पीछे मीडिया चौपाल… वॉल ऑफ डेमोक्रेसी… वगैरह टेंटों से आगे बढ़ते हुए अस्‍थाई लाइब्रेरी से पहले एक टेंट पर बाबा टिकैत यानी भारतीय किसान यूनियन को खड़ा करने वाले किसान नेता स्‍वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत की फोटो छपी फ्लैक्‍स लगी हुई है. इसमें तस्‍वीर में बाबा टिकैत हुक्‍का पीते हुए दिख रहे हैं. तस्‍वीर शायद तब की है, जब दिल्‍ली में आंदोलन के समय वे मंचासीन रहे हों.

हरियाणा से पहुंचे एक वेल ड्रेस्‍ड किसान जवाहर लाल नेहरू और ज्ञानी जैल सिंह से लेकर लोकतंत्र और मीडिया की टीआरपी तक के किस्‍से सुना रहे हैं. ढलती रात के साथ बढ़ती ठंड में यहीं बगल में अलाव जलाई गई है. आग के बगल में हुक्‍का भी रखा हुआ है, जो अलाव के चारों ओर बैठे किसानों के बीच बारी-बारी से घुमाई जा रही है.

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सुबह के साढ़े तीन (3:30) पार हो चुके हैं. हुक्‍के की गुड़गुड़ आवाज को छोड़ हम वापस लौट रहे हैं. मंच से बगल में खड़ी कार में अब गदर फिल्‍म का ” मैं निकला गड्डी लेके…” गाना बज रहा है. युवा उछल रहे हैं, डांस कर रहे हैं. चाय की सेवा जारी है. हम आंदोलन स्‍थल से वापस लौट रहे हैं, लेकिन बढ़ती दूरी के बावजूद बीच-बीच में नारों की आवाज भी हमारे कानों तक पहुंच आ रही है.

पता चला है कि हरियाणा के सभी खाप प्रतिनिधि शनिवार को राकेश‍ टिकैत से मुलाकात करेंगे. इधर दिल्‍ली और यूपी पुलिस की जांच भी जारी है. किसान आंदोलन का क्‍या होगा, इसका जवाब भविष्‍य की गर्भ में है, लेकिन गाजीपुर बॉर्डर पर एक नई सुबह होने को आतुर है.

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