आसान नहीं है महिला आरक्षण की राह! संसद से पास होने पर भी 2029 तक नहीं हो सकेगा लागू

नई दिल्ली. केंद्र सरकार ने संसद के निचले सदन, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण प्रदान करने से संबंधित ऐतिहासिक ‘नारीशक्ति वंदन विधेयक’ को मंगलवार को लोकसभा में पेश किया. विधेयक में कहा गया है कि आरक्षण अगली जनगणना के प्रकाशन और उसके पश्चात परिसीमन प्रक्रिया के बाद ही प्रभावी होगा. ऐसे में 2024 चुनाव से पहले इसके लागू होने की संभावना नहीं के बराबर है. इसका एक मतलब यह भी है कि भले ही विधेयक पारित हो जाए, लेकिन 2029 में चुनाव होने तक इसे अधिनियमित नहीं किया जा सकता है.

लोकसभा में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने महिला आरक्षण से जुड़ा 128वां संविधान संशोधन ‘नारी शक्ति वंदन विधेयक-2023’ पेश किया. यह संसद के विशेष सत्र में नए संसद भवन में पेश किया जाने वाला पहला विधेयक है. सरकार ने कहा कि महिलाओं के आरक्षण से संबंधित इस संविधान संशोधन विधेयक का उद्देश्य राष्ट्र और राज्य स्तर पर नीति बनाने में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना है. विधेयक में फिलहाल 15 साल के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है और संसद को इसे बढ़ाने का अधिकार होगा.

एससी और एसटी के लिए आरक्षण
जनगणना 2021 में आयोजित होने वाली थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसमें देरी हुई. चूंकि आम चुनाव 2024 में होने हैं, इसलिए भारत में अगली जनगणना अगले साल के अंत तक नहीं हो सकती है. विधेयक में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) से संबंधित महिलाओं के लिए आरक्षण शामिल है. हालांकि, इसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का कोई उल्लेख नहीं है. विधेयक के मसौदे में कहा गया है कि “जितना संभव हो सके”, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें प्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से भरी जाएंगी. आरक्षित सीटों में, “जितना संभव हो” एक तिहाई सीटें एससी और एसटी के लिए होंगी.

मेघवाल ने विधेयक पेश करते हुए कहा कि यह महिला सशक्तीकरण से संबंधित विधेयक है और इसके कानून बन जाने के बाद 543 सदस्यों वाली लोकसभा में महिला सदस्यों की संख्या मौजूदा 82 से बढ़कर 181 हो जाएगी. उन्होंने कहा कि इसके पारित होने के बाद विधानसभाओं में भी महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीट आरक्षित हो जाएंगी.

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