Uttarakhand: ताजा हो गईं केदारनाथ आपदा की भयावह यादें, जानिए इससे पहले कब-कब हुए दर्दनाक हादसे

उत्तराखंड के चमोली जिले में रविवार को ग्लेशियर टूटने (joshimath uttarakhand) से नदियों में आई विकराल बाढ़ ने आठ साल पहले की केदारनाथ आपदा की भयावह यादें फिर से ताजा कर दीं. हालांकि, गनीमत यह रही कि साल 2013 की तरह इस बार बारिश नहीं थी और आसमान पूरी तरह साफ था जिससे हेलीकॉप्टर उड़ाने में मौसम बाधा नहीं बना. एसडीआरएफ की टीमें जल्द ही प्रभावित स्थान पर पहुंच गईं और बचाव अभियान तुरंत शुरू कर दिया गया.

प्रदेश के पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार के मुताबिक, पुलिस और एसडीआरएफ के जवान पूरी तरह मुस्तैदी से जोशीमठ के पास आई आपदा (cloudburst in uttarakhand) से निपटने में लगे हैं और हमारा पूरा प्रयास यह है कि जो भी लोग लापता हैं, उन्हें ढूंढा जाए. ऋषिकेश और हरिद्वार में भले ही आपदा का असर महसूस न हो, लेकिन शहरों को अलर्ट पर रखा गया है. सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा कि जिस जगह पर ग्लेशियर टूटे हैं वहां बहुत ज्यादा आबादी नहीं थी, लेकिन कई बिजली परियोजनाएं प्रभावित हुई हैं. सरकार ने लोगों से गंगा नदी के पास न जाने की अपील भी की है.

साल 2013 में आई आपदा में तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को आपदा की गंभीरता को समझने में समय लगने के कारण तीखी आलोचना झेलनी पड़ी थी जिसके चलते उन्हें सत्ता से भी हाथ धोना पड़ा था. दूसरी तरफ, मौजूदा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत बिना समय गंवाए आपदा की सूचना मिलते ही तत्काल हेलीकॉप्टर से प्रभावित स्थल पर पहुंचे और मौके का जायजा लिया. वे खुद बचाव और राहत कार्य कार्य की निगरानी कर रहे हैं. इधर दिल्ली में प्रधानमंत्री भी पूरी घटना पर पल-पल की नजर रखे हुए हैं.

तबाही का मंजर
16-17 जून 2013 की भीषण आपदा उत्तराखंड के लोगों ने पहली बार देखी थी. पानी के प्रचंड प्रवाह के रास्ते में जो कुछ आया, तिनके की तरह बह गया. सैकड़ों जिंदगियां तबाह हो गईं. कई लापता लोगों के बारे में अब भी कुछ पता नहीं है. देश के सामने उस वक्त बड़ी विकट परिस्थिति थी जिसमें लगभग हर सरकारों ने बढ़चढ़ कर मदद का आह्वान किया और हरसंभव सहायता की. 8 साल पहले की यह घटना रविवार को फिर ताजा हो गईं जिसमें लगभग 100 लोगों के मरने की आशंका जताई जा रही है. लोग ये भी सवाल उठा रहे हैं कि केदारनाथ की आपदा से क्या सीखा गया जो फिर एक नई आपदा उत्तराखंड के लोगों के माथे पर सवार है.

16 जून 2013 की केदारनाथ आपदा में साढ़े 4 हजार लोगों की मौत हो गई थी. वह घटना से भी ग्लेशियर से जुड़ी थी, इसलिए सवाल उठ रहा है कि उस घटना पर अध्ययन तो दूर, ग्लेशियर के मुंह पर बांध बनाकर कुदरत के साथ खिलवाड़ किया गया जिसका नतीजा आज सबके सामने है. केदारनाथ आपदा में कई हजार गांव हमेशा के लिए तबाह हो गए. कई लोग अपने घर में ही मारे गए क्योंकि पानी इतनी तेजी से घुसा कि किसी को सोचने का भी मौका नहीं मिला. कई हजार मवेशी बाढ़ के पानी की चपेट में आए. अच्छी बात यह रही कि तब सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और आईटीबीपी की टीमों ने एक साथ काम किया और 1 लाख लोगों की जिंदगी बचाई.

उत्तरकाशी का भूकंप
पिछले तीन दशक की बात करें तो उत्तराखंड में एक से एक बड़ी घटनाएं हुई हैं जिससे शायद ही कोई सबक लिया गया. इन घटनाओं में 1991 का उत्तरकाशी भूकंप सबसे खतरनाक माना जाता है. तब उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल एक हुआ करते थे. दोनों राज्यों का बंटवारा नहीं हुआ था. 1991 की इस भूंकप की घटना ने 6.8 रिक्टर स्केल पर पूरी धरती को कंपा दिया था. एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक, उस घटना में 768 लोगों की मौत हुई थी और हजारों घर तबाह हुए थे. कई लोग हमेशा के लिए बेघर हो गए.

1998 का मालपा भूस्खलन
1998 में पिथौरागढ़ जिले में बड़ी दर्दनाक घटना हुई थी. यहां के मालपा गांव में चट्टान सरक गई. यह घटना इतनी भयावह थी कि देखते-देखते 225 लोग काल के गाल में समा गए. इन मृतकों में 55 लोग ऐसे शामिल थे जो उस वक्त मानसरोवर यात्रा पर थे और हादसे के वक्त भूस्खलन की चपेट में आ गए. यह घटना और भी खतरनाक इसलिए हो गई क्योंकि मिट्टी और चट्टानों के मलबे ने शारदा नदी का जल प्रवाह रोक दिया जिससे कई गावों में पानी घुस गया.

1999 का चमोली भूंकप
1999 में चमोली जिले में 6.8 रिक्टर स्केल का भूकंप आया था. इस घटना में 100 लोगों की मौत हो गई थी. चमोली जिले से सटे रुद्रप्रयाग जिले में भी बड़े स्तर पर क्षति हुई थी. भूकंप के चलते नदी नाले में बड़ी तब्दीली देखी गई. नदी-नाले और झीलों का पानी गांवों में घुस गया. कई नदियों का रास्ता बदल गया. हल्के प्रवाह वाली नदियां वेगवती हो गईं और रास्ते में जो कुछ मिला, उसे बहा ले गईं. भूकंप इतना खतरनाक था कि सड़कों और इमारतों में बड़ी-बड़ी दरारें आ गईं.

2013 का भयावह बाढ़
इसे केदारनाथ आपदा के नाम से भी जाना जाता है. देश और उत्तराखंड के इतिहास में इतनी भयावह घटना कभी नहीं हुई जिसमें देखते-देखते जल प्रलय ने हजारों लोगों की जान ले ली. किसी को संभलने तक का मौका नहीं मिला. जो जहां था, वही दफन हो गया. कई महीने तक लोगों की खोज में अभियान चलाए गए. कई लोग आज तक लापता हैं. कई परिवार अपने बिछड़े लोगों को अभी तक तलाश कर रहे हैं. एक लाख से ज्यादा लोगों को समय रहते बचा लिया गया, अन्यथा यह घटना और विकराल होती.

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