‘पत्नी नहीं है फीमेल’…, पति ने सुप्रीम कोर्ट में यह कहते हुए डाली अर्जी, मांगा तलाक, जानिए अब अदालत ने क्या एक्शन लिया

सुप्रीम कोर्ट में तलाक का एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है. इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने पति की ओर से तलाक की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए पत्नी को इस संबंध में नोटिस जारी किया है. पति ने धोखा देने के आधार पर तालाक मांगा है. पति का कहना है कि उसकी पत्नी फीमेल नहीं है.

पत्नी से मांगा जवाब

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच ने शुक्रवार को पत्नी से पति की याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा, जिसमें मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश 29-07-2021 की ग्वालियर बेंच को चुनौती दी गई है. कोर्ट ने कहा कि “याचिकाकर्ता के वकील की मानें तो प्रतिवादी के मेडिकल हिस्ट्री में “लिंग + इम्परफोरेट हाइमन” आया हुआ है. इसलिए प्रतिवादी महिला नहीं है.

बच्चे जैसा था प्राइवेट पार्ट
याचिकाकर्ता के वकील प्रवीण स्वरूप की ओर से दायर याचिका में बताया गया है कि पुरुष और महिला की शादी जुलाई 2016 में हुई थी. शादी के बाद, पत्नी ने कुछ दिनों तक मासिक धर्म से गुजरने की बात कहते हुए संबंध नहीं बनाया. इसके बाद वह पति का घर छोड़कर मायके चली गई. 6 दिनों बाद वह ससुराल लौटी. इसके बाद जब पति ने फिर से संबंध बनाने की कोशिश की, तो पता चला कि पत्नी का प्राइवेट पार्ट फीमेल जैसा नहीं था. बल्कि वह एक बच्चे के प्राइवेट पार्ट जैसा था. इसके बाद पति उसे मेडिकल चेक-अप के लिए ले गया, जहां यह पता चला कि उसे ‘इम्परफोरेट हाइमन’ (एक चिकित्सा स्थिति जिसमें हाइमन योनि के पूरे खुलने वाले एऱिया को कवर करता है) नाम की एक चिकित्सा समस्या है.

मेडिकल चेकअप के बाद ठगा महसूस किया

इसके बाद महिला को सर्जरी की सलाह दी गई थी, लेकिन डॉक्टर ने यह भी कहा कि सर्जरी से एक कृत्रिम योनि तो बन जाएगी, लेकिन महिला के गर्भवती होने की संभावना लगभग असंभव है. इसके बाद इस शख्स ने खुद को ठगा महसूस किया और ससुर को फोन कर अपनी बेटी को वापस ले जाने को कहा.

सर्जरी कराके फिर लौटी महिला

याचिकाकर्ता के मुताबिक, तब तो महिला को ले जाया गया, लेकिन कुछ दिन बाद ऑपरेशन करा के वह फिर से उसके घर लौट आई. उसके पिता ने भी उस पर जबरन रखने का दबाव बनाया.

हाई कोर्ट के फैसले को दी थी चुनौती

इसके बाद पीड़ित मध्य प्रदेश हाई कोर्ट गया. यहां उसके धोखे के आऱोपों को कोर्ट ने 29 जुलाई 2021 को खारिज कर दिया. इसके बाद पीड़ित सुप्रीम कोर्ट पहुंचा.

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