नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिवार ने जापान में रखी अस्थियों की DNA टेस्ट कराने की मांग की

कोलकाता: स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Freedom Fighter Netaji Subhash Chandra Bose) को लापता हुए सात दशक बीत चुके हैं. वह वर्ष 1945 में लापता हुए थे और कई इतिहासकारों का मानना है कि उनकी मृत्यु विमान दुर्घटना (Plane crash) में हो गई थी. हालांकि, जापान के मंदिर में रखी उनकी तथाकथित अस्थियों को डीएनए जांच (DNA Probe) के लिए भारत लाने की मांग अब तक पूरी नहीं हुई है. नेताजी के पोते सूर्य कुमार बोस (Surya Kumar Bose) ने मंगलवार को एक बयान जारी कर नए सिरे से अधिकारियों से रेंकोजी मंदिर (Renkoji Temple) में रखी अस्थियों की डीएनए जांच कराने की मांग की ताकि उनके ‘लापता’ होने को लेकर उत्पन्न विवाद को हमेशा के लिए समाप्त किया जा सके.

नेताजी के लापता होने को लेकर कई तरह के कयास लगाए जाते हैं और कुछ विशेषज्ञों का दावा है कि नेताजी की मौत विमान हादसे में नहीं हुई और वे मरते दम तक वेश बदलकर रहे. जर्मनी में रह रहे बोस ने कहा, ‘‘ करीब दो दशक पहले न्यायमूर्ति मुखर्जी जांच आयोग की जांच के दौरान डीएनए जांच करने और नेताजी के अवशेषों को स्वेदश लाने के अवसर को दुखद रूप से खो दिया. मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक रेंकोजी मंदिर के अधिकारी नेताजी के कथित अवशेषों की डीएनए जांच की अनुमति देने को इच्छुक नहीं है.”

उन्होंने अपने बयान में रेखांकित किया कि रेंकोजी मंदिर के मुख्य पुजारी रिवरेंड निचिको मोचिजुकी ने वर्ष 2005 में तोक्यों स्थित भारतीय दूतावास को पत्र लिखकर अस्थियों को लौटाने पर जोर दिया था. पत्र के मुताबिक मोचिजुकी ने दूतावास को लिखा, ‘‘मैं महसूस करता हूं कि अगर मैं डीएनए जांच के प्रस्ताव को स्वीकार करता हूं और अस्थियां अतंत: भारत को वापस लौटाई जाती हैं, तो मेरे पिता की आत्मा को अंतत: शांति मिलेगी. इस प्रकार मैं जांच में सहयोग की पेशकश करता हूं.”मोचिजुकी के पिता ने ही सितंबर 1945 में नेताजी की तथाकथित अस्थियां प्राप्त की थी.

मुख्य पुजारी के मूल पत्र का अनुवाद नेताजी की पोती माधुरी बोस ने किया है. पेशे से आईटी पेशेवर बोस ने वर्ष 2015 में बर्लिन में प्रधानमंत्री नरेंद मोदी से मुलाकात कर नेताजी से जुड़े सभी गोपनीय दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की मांग की थी. इससे पहले नेताजी की बेटी अनिता बोस ने भी भारत और जापान की सरकार से अनुरोध किया था कि वे उनके पिता की तथाकथित अस्थियों को स्वदेश वापस ले जाने की व्यवस्था करें.

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