सुप्रीम कोर्ट में अंकुर गुप्ता की बड़ी जीत, 28 साल बाद हक में आया फैसला, अब मिलेगी नौकरी

28 साल के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार अंकुर गुप्ता नाम के शख्स को न्याय मिल ही गया. अंकुर ने बिना हार माने अपने हक के लिए कानून की लंबी लड़ाई लड़ी और फैसला उसके हक में आया. सुप्रीम कोर्ट ने डाक विभाग में अंकुर गुप्ता की नियुक्ति का आदेश दे दिया है, इसके साथ कोर्ट ने ये भी कहा कि इस पद के लिए उन्हें अयोग्य ठहराने में गलती हुई है.

अब इस पूरी कहानी के बारे में आपको बताते हैं. दरअसल अंकुर गुप्ता नाम के शख्स ने साल 1995 में डाक विभाग में डाक सहायक पद के लिए नौकरी का आवेदन किया था. अंकुर ने इसकी परीक्षा दी और वो पास भी हो गए, उन्होंने अपनी ट्रेनिंग भी पूरी की लेकिन बाद में अंकुर को ये कहकर अयोग्य ठहरा दिया कि उन्होंने बारहवीं की शिक्षा व्यावसायिक स्ट्रीम से की है इसीलिए उन्हें ये नौकरी नहीं मिल सकती.

अंकुर ने विभाग के फैसले के खिलाफ लड़ने का फैसला किया और कोर्ट का रुख किया. अंकुर दूसरे असफल उम्मीदवारों के साथ केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) में गए, जहां फैसला उनके पक्ष में आया. हालांकि डाक विभाग ने कैट के फैसले को चुनौती देते हुए साल 2000 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. इलाहाबाद हाई कोर्ट 2017 में डाक विभाग की याचिका को खारिज कर कैट का फैसला बरकरार रखा.

एक बार फिर से डाक विभाग ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की लेकिन कोर्ट ने साल 2021 में फिर से खारिज कर दिया. इसके बाद डाक विभाग इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने मामले की सुनवाई की. इस दौरान पीठ ने कहा कि शुरुआत में अभ्यर्थी की उम्मीदवारी को खारिज नहीं किया उसे परीक्षा देने शामिल होने दिया, अभ्यर्थी मैरिट लिस्ट में भी आया. ऐसे में उस उम्मीदवार के साथ निष्पक्ष और भेदभाव रहित व्यवहार किया जाएगा.

इसके साथ ही पीठ ने कहा कि किसी भी उम्मीदवार को नियुक्ति पर दावा करने का अधिकार नहीं है, लेकिन उसके पास निष्पक्ष और भेदभाव-रहित व्यवहार का सीमित अधिकार है. कोर्ट ने माना कि अभ्यर्थी अंकुर के साथ भेदभाव किया गया है. विभाग ने मनमाने तरीके से उन्हें परीणाम के लाभ से वंचित रखा है.

कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए डाक विभाग को आदेश दिया कि अंकुर को एक महीने के अंदर डाक सहायक के पद पर नियुक्त किया जाए. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि अगर कोई पद खाली नहीं है तो उसके लिए पद सृजित किया जाए

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