हाल ही में मेघालय में भारी बारिश के कारण एक रैट-होल कोयला खदान ढह गई है. इस खदान के ढहने के कारण पांच मजदूर अंदर ही फंस गए हैं. सरकार की ओर से तमाम कोशिशों के बाद भी इन मजदूरों को निकाला नहीं जा सका है. घटना पूर्वि जयंतिया हिल्स जिले की बताई जा रही है. खदाने के अंदर फंसे हुए सभी लोग नाबालिग बताए जा रहे है. वहीं प्रशासन रैट होल माइनिंग खदान से सभी को सुरक्षित निकालने के लिए लगातार प्रयास कर रही है.
ऐसे में सभी के मन में सवाल उठता है कि आखिर रैट होल माइनिंग क्या है? हम आपको इन्ही सवालों का जवाब आपको देंगे और साथ ही यह भी बताएंगे कि इस तरीके कि माइनिंग लोगों को लिए क्यों खतरनाक है.
रैट-होल माइनिंग क्या है?
सबसे पहले हम आपके मन में उठ रहे सवाल रैट होल माइनिंग क्या है उसका जवाब देते हैं. आपको बता दें कि भारत में अधिकांश खदान राष्ट्रीयकृत हैं और इन खदानों से तभी कोई खनीज निकाल सकते हैं जब आपके पास सरकार की अनुमति हो या सरकार की ओर से आपको खनन का लाइसेंस मिला हो. वहीं उत्तर-पूर्वी भारत के अधिकांश जनजातीय क्षेत्रों में खनिजों का मालिकाना हक व्यक्तिगत स्तर पर व समुदायों को मिलता है.
मेघालय में कोयला, लौह अयस्क, चूना पत्थर व डोलोमाइट के विशाल भंडार हैं. ऐसे में इन खनीजों को निकालने के लिए वहां के स्थानीय लोग मिलकर एक लंबी संकरे सुरंग का निर्माण करते हैं जिसके जरिए खनीजों तक पहुंचते हैं
खनन की इस प्रक्रिया में अपनाए जाने वाले रास्तों को रैट-होल खनन कहते हैं. क्योंकि इसकी ऊंचाई और चौड़ाई इतनी कम होती है कि न तो आप खड़े होकर इसमें चल सकते हैं और न हीं बैठकर.
इस खनन में बच्चों या दुबले पतले इंसानों को काम में लगाया जाता है. इन संकरे रास्तों से रेंगते हुए एक व्यक्ति खनन करके खनीज पदार्थों को ट्रॉली में भरकर बाहर निकालता है. माइनिंग के इसी तरीके को रैट होल कहा जाता है.
क्यों होता है रैट होल माइनिंग
चूंकि मेघालय में बड़ी संख्या में खनिज का खनन व्यक्तिगत स्तर पर होता है. ऐसे में यहां के लोगों के पास संसाधनों का अभाव है और खनीज संपदा धरती के काफी अंदर हैं. स्थानीय लोग जीवन-यापन के लिए इन खनीजों को इसी तरह से बाहर निकालते हैं. इसके लिए संकीर्ण सुरंग (रैट होल) का निर्माण करते हैं.
क्यों है असुरक्षित
आप कल्पना करें कि आप जमीन के अंदर जाने के लिए किसी ऐसे रास्ते का प्रयोग करते हैं जो कि बहुत हीं संकरा हो. यानि कि इतना संकरा कि न उसमें खड़ा हो सकते हैं और न उसमें बैठने की जगह हो. जब आप अंदर पहुंच जाते हैं तो बाहर बहुत तेज बारिश होती है और उस संकरे रास्ते में पानी भर जाता है. पानी भरने के कारण या तो रास्ता ढह जाता है या उसमें इतना पानी भर जाता है कि निकलने के लिए बने रास्ते भी पानी से लबालब भर जाते हैं. ऐसी स्थिति में क्या होगा?
क्यों फंसते हैं मजदूर
मेहनत करके जमीन के अंदर बने खदानों से ये मजदूर रेंगते हुए खनीज पदार्थ लेकर बाहर आते हैं और वहां मौजूद कुछ लोग इनके खनन पदार्थों को औने पौन दाम में खरीद लेते हैं. ऐसा इसलिए होता है कि ये मजदूर लोग ज्यादातर आदिवासी होते हैं. ऐसी स्थिति में इन लोगों को अपनी सामन की कीमतों के बारे में नहीं पता होता है.
बिचौलियों की ओर से मिलने वाले पैसों को ही ठीक मानकर ये लोग सालों भर काम करते हैं और इन्हें अंदर जाने के बाद मौसम का अनुमान भी नहीं होता है. जैसे ही इलाके में बारिश के कारण ये लोग अंदर ही फंस जाते हैं और ऐसी स्थिति में अक्सर इन मजदूरों की जान चली जाती है.
मजदूरों की फंसने की घटना मानसून में अक्सर देखी जाती है क्योंकि बारिश के कारण सुरंग के लिए बनाए गए रास्तों की चट्टाने कमजोर हो जाती हैं और जरा सी ही दबाव पड़ने पर भरभरा कर गिर जाते हैं और रास्ता ब्लॉक हो जाता है.
क्या है एनजीटी का रुख
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मेघालय में 2014 से अवैज्ञानिक और असुरक्षित कोयला खदानों पर प्रतिबंध लगा रखा है. एनजीटी की ओर से रोक के बाद भी इलाके में तेजी से रैट होल माइनिंग का काम जारी है. एनजीटी ने न सिर्फ रैट-होल माइनिंग को प्रतिबंध कर रखा है बल्कि सभी ‘अवैज्ञानिक और अवैध खनन’ पर भी प्रतिबंध लगाया है.