नई दिल्ली: भारत में बच्चों के कोरोना वैक्सीन ट्रायल को अनुमति मिल गई है. 12 मई को देश के ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमिटी की सिफारिश को स्वीकार कर लिया है और भारत बायोटेक की कोरोना वैक्सीन कोवैक्सीन के दूसरे और तीसरे क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति दी है. ये क्लीनिकल ट्रायल 2 से 18 वर्ष की आयु समूह में किया जाएगा.
इस ट्रायल का क्या मकसद है और कितना समय लगेगा? इस पर एम्स में कम्युनिटी मेडिसिन के डॉक्टर और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के एम्स में ट्रायल के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर डॉ. संजय राय से खास बातचीत की.
सवाल- वैक्सीन का ये ट्रायल क्यों किया जा रहा है और इससे क्या पता चलेगा?
जवाब- इसको मैं सराहनीय कदम कह सकता हूं क्योंकि एविडेंस जनरेट करने की बात है. अभी तक हमारे पास बच्चों में वैक्सीन सेफ है या नहीं या इफेक्टिव है या नहीं इसकी जानकरी नहीं है. आज जरूरत नहीं है लेकिन अगर कल जरूरत पड़ी तो मॉडिफिकेशन के साथ वैक्सीन को लॉन्च किया जा सकता है. इसलिए एविडेंस जनरेट करने की जरूरत थी लेकिन उस एविडेंस का सदुपयोग होने की जरूरत है. कई बार दुरुपयोग होने की संभावना है. आज की तारीख में बात करूं तो बच्चों के लिए आज की तारीख में ज्यादा उपयोगी साबित नहीं होगा लेकिन तीसरी और चौथी लहर की बात की जा रही है तो किसी के लिए भी खतरा हो सकता है. बुजुर्ग के लिए, एडल्ट के लिए, बच्चों के लिए. अगर उसमें कोई खतरनाक स्ट्रेन आ जाता है खतरा पैदा होता तो पहले से जो एविडेंस हैं तो वैक्सीन उनको दी जा सकती है. इसलिए एविडेंस जनरेट करने के लिए एक अच्छा कदम है.
सवाल- फेज 2 और 3 से क्या पता चलेगा?
जवाब- ये दोनों एक ही होता है. फेज 2 में हम इम्मुनो जेन्सिटी देखते है कि क्या एंटीबॉडी बन रही और कितनी बन रही है. पहले चरण में सेफ्टी देखते हैं. वो इसी में देखेंगे. सेफ्टी हर फेज में देखते है. जैसे बड़ों में किया था, वही प्रिंसिपल यहां भी होता है.
सवाल- इस ट्रायल में बच्चे हैं, इसमें कितना वक्त लगेगा?
जवाब- वैसे ही जैसा बड़ों का था. दो डोज का शेड्यूल, उसके बाद उसके नतीजे देखेंगे तो इसमें कम से कम 6 महीने का वक्त लगेगा.
सवाल- बच्चों को अगर कोई दिक्कत होगी तो हो सकता है कि वो बता भी न पाएं, उस हालात में क्या करेंगे?
जवाब- सब का स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल है. जिसको फॉलो करना होता है. जैसे बड़ों को वैक्सीन देने के बाद कोई ड्रग या वैक्सीन की ट्रायल में रेगुलर फॉलोअप होता है, डेली फॉलो अप होता है, बच्चों का भी यही होगा. उसका उद्देश्य ही यही है कि कोई भी एडवर्स इवेंट होगा तो उसको डॉक्यूमेंट करना और उसको प्रोपेरली एड्रेस करना. वही प्रक्रिया यहां भी लागू होगी. वैक्सीन देने के बाद उनका फॉलोअप होगा. कोई दिक्कत होती है तो डॉक्यूमेंट किया जाएगा तभी तो बताया जा सकता है कि इस तरह साइड इफेक्ट हो रहे है, इतने परसेंट है तो ये सब इस क्लीनिकल ट्रायल से पता चलेगा.