नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि पति और पत्नी एक परिवार के दो स्तंभ हैं, जो एक साथ मिलकर किसी भी स्थिति का सामना कर सकते हैं, लेकिन जब एक स्तंभ टूट जाता है तो यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि दूसरा स्तंभ अकेले ही घर को संभाल लेगा. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली पीठ ने परिवार अदालत (Family Court) द्वारा दिए गए तलाक के खिलाफ पति की अपील को खारिज करते हुए कहा कि अपीलकर्ता पति और एक पिता के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहा और ‘‘घर को संभालने, उसकी नौकरी और बच्चों की देखभाल करने का पूरा बोझ प्रतिवादी (पत्नी) पर डाल दिया.”
न्यायमूति सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता ने कोई जिम्मेदारी नहीं ली और इसके बजाय लगातार अपनी पत्नी को अपशब्द कहे, उसका और उसके परिवार के सदस्यों का अपमान किया, उसके चरित्र पर संदेह किया और यहां तक कि तलाक देने के लिए पैसे की भी मांग की.
अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘‘पति और पत्नी परिवार के दो स्तंभ हैं. साथ में वे किसी भी स्थिति से निपट सकते हैं, परिवार को सभी परिस्थितियों में संतुलित कर सकते हैं. यदि एक स्तंभ कमजोर हो जाता है या टूट जाता है, तो पूरा घर बिखर जाता है. दोनों स्तंभ एक साथ मिलकर किसी भी स्थिति का सामना कर सकते हैं.”
अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में उसे परिवार अदालत के आदेश में कोई कमी नहीं मिली और उसने इस बात पर गौर किया कि भले ही दोनों की शादी को लगभग 24 साल हो गए हों, लेकिन उनके बीच का बंधन पूरी तरह से टूट गया है.