कांग्रेस पार्टी अपने वर्किंग कमेटी चुनावों पर क्यों साधे रहती है चुप्पी

कांग्रेस संचालन समिति की बैठक रविवार को आयोजित हुई जिसमें निर्णय लिया गया कि पार्टी का अधिवेशन अगले साल फरवरी महीने के दूसरे सप्ताह में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आयोजित किया जाएगा. इस बैठक में भारत जोड़ो यात्रा के बाद की कार्रवाई का भी जायजा लिया गया. यह यात्रा 26 जनवरी को श्रीनगर में समाप्त होने वाली है.

फरवरी महीने में अधिवेशन आयोजित करने का निर्णय उम्मीद के मुताबिक रहा. केवल संचालन समिति ने इसे दिल्ली के बजाय रायपुर में आयोजित करने का निर्णय लिया जो कि अगले साल नवंबर में होने वाले छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव की वजह से है.

संगठन में आंतरिक चुनावों के बाद पूर्ण अधिवेशन का आयोजन अनिवार्य है. पार्टी के संविधान के मुताबिक नए अध्यक्ष के चुनाव को पार्टी के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा अनुमोदित किया जाना जरूरी है. कांग्रेस पार्टी के आंतरिक चुनाव अक्टूबर में आयोजित हुए थे जिसमें पार्टी का नेतृत्व करने के लिए सबसे लोकप्रिय विकल्प के तौर पर वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खरगे उभरे. दिलचस्प बात यह है कि खरगे के चुने जाने के बाद से पार्टी के केंद्रीय कार्यालय 24 अकबर रोड में नया बदलाव आया है.

1998 में जब से गांधी परिवार को पार्टी अध्यक्ष का पद मिला, तब से पार्टी अध्यक्ष के कार्यालय में अधिकांश समय ताला लगा रहा. गांधी परिवार ने अपने घरों से काम करना पसंद किया और ज्यादातर बैठकों के आयोजन सोनिया गांधी के आवास 10 जनपथ के पास वाले बंगले या ऑनलाइन हुए.

इस वजह से पार्टी में कथित तौर पर एक बार फिर व्यक्ति का कद बढ़ने लगा. गांधी परिवार के उभरने और पार्टी से बड़े के तौर पर स्वीकार किए जाने के कारण संगठन का महत्व कम हुआ.

हालांकि खरगे नियमित रूप से नहीं तो अक्सर पार्टी कार्यालय जाते हैं और उन्होंने अब तक पार्टी के केंद्रीय कार्यालय में सभी पार्टी बैठकों की अध्यक्षता की है. सोनिया गांधी और उनकी बेटी प्रियंका गांधी समेत पार्टी के सीनियर नेता 47 सदस्यीय संचालन समिति के सदस्यों में शामिल हैं जो पार्टी कार्यालय में मौजूद रहे.

CWC के सदस्यों के चुने जाने पर संचालन समिति चुप
संचालन समिति ने भले ही रायपुर में पूर्ण अधिवेशन आयोजित करने का निर्णय लिया हो, लेकिन वह इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर चुप रही कि क्या पार्टी के लिए निर्णय लेने वाली शीर्ष संस्था कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) के सदस्य रायपुर अधिवेशन में चुने जाएंगे या वे केवल मनोनीत होंगे.

संचालन समिति की बैठक के बाद प्रेस ब्रीफिंग के दौरान संगठन के प्रभारी महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा, ‘कांग्रेस कार्यसमिति के चुनाव पार्टी संविधान के मुताबिक होंगे.’ पार्टी के मुख्य प्रवक्ता जयराम रमेश इस सवाल को बार-बार दोहराए जाने से कुछ चिढ़ गए और उन्होंने मीडिया पर राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की उपलब्धियों को रिपोर्ट नहीं करने का आरोप लगाया.

इन अस्पष्ट और टालमटोल भरे जवाबों ने अटकलों को जन्म दिया है कि खरगे सोनिया गांधी की तरह मनोनीत कांग्रेस कार्यसमिति का गठन कर सकते हैं. कहा जाने लगा कि खरगे सीडब्ल्यूसी में चुनिंदा नेताओं को शामिल कर सकते हैं ताकि वे और गांधी परिवार बिना किसी सवाल के पार्टी पर पूरा नियंत्रण रख सकें.

निर्वाचित लोगों में से ही करना होगा नए महासचिवों को नामित
कांग्रेस पार्टी का संविधान बहुत स्पष्ट है कि उसके सभी महासचिवों को सीडब्ल्यूसी का सदस्य होना चाहिए. यदि कांग्रेस कार्यसमिति के चुनाव होते हैं और ऐसे नेता जो पार्टी हाईकमान के प्रति वफादार नहीं हैं वे चुने जाते हैं तो कांग्रेस अध्यक्ष निर्वाचित लोगों में से ही नए महासचिवों को नामित करने के लिए मजबूर होंगे. इससे पार्टी पर खरगे और गांधी परिवार की पकड़ कमजोर हो सकती है.

बता दें कि 1998 के बाद पहली बार अक्टूबर में कांग्रेस पार्टी के आंतरिक चुनाव हुए. इतने सालों तक असहमति के स्वरों को या तो दबा दिया गया या उन्हें पार्टी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया. नतीजतन पार्टी शासन की बागडोर गांधी परिवार के पास रही. वे मजबूत बनकर उभरे. शीर्ष नेतृत्व और उनके परिवार के प्रति वफादारी के सामने पार्टी के हित में समर्पण कम हो गया. कई लोग तर्क देते हैं कि यह सालों से कांग्रेस पार्टी के पतन और शर्मनाक चुनावी प्रदर्शन का बड़ा कारण रहा.

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