सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को कहा कि याचिकाओं में उठाए गए अन्य मुद्दों पर आगे बढ़ने से पहले वह यह तय करेगी कि प्रावधान संवैधानिक रूप से वैध है या नहीं. 5 जजों की बेंच की अध्यक्षता चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड कर रहे हैं.
पीठ में जस्टिस एम आर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पी एस नरसिम्हा भी शामिल हैं. बेंच ने कहा कि शिवसेना में विभाजन और महाराष्ट्र में बाद के घटनाक्रमों पर दायर याचिकाओं पर सुनवाई पूरी होने के बाद इस मामले को उठाया जाएगा. पीठ 14 फरवरी से महाराष्ट्र मामले की सुनवाई शुरू करेगी.
बेंच ने स्पष्ट किया है कि तथ्य यह है कि उसने एक प्रारंभिक प्रश्न तैयार किया है, जिसकी वह पहले जांच करेगी. वर्तमान में संविधान पीठ ये तय करेगी कि नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए संवैधानिक रूप से वैध है या नहीं.
सिटीजनशिप एक्ट का सेक्शन 6A क्या है?
नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6ए असम समझौते द्वारा कवर किए गए व्यक्तियों की नागरिकता के विशेष प्रावधानों से संबंधित है. प्रावधान में कहा गया है कि वे सभी जो 1 जनवरी, 1966 को या उसके बाद और 25 मार्च, 1971 से पहले निर्दिष्ट क्षेत्र (नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1985 के प्रारंभ के समय बांग्लादेश के सभी क्षेत्रों सहित) से असम आए थे और तब से असम के निवासी हैं, उन्हें नागरिकता के लिए धारा 18 के तहत अपना पंजीकरण कराना होगा.
यह प्रावधान 1985 में पेश किया गया था जब भारत सरकार और आंदोलनकारी समूहों के बीच असम समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. 2012 में असम संमिलिता महासंघ ने धारा 6ए को चुनौती दी थी. इसे भेदभावपूर्ण, मनमानी और अवैध बताया गया.