तीन साल में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई करते हुए 288 लोगों ने जान गंवाई

दिल्ली. सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने सोमवार को कहा कि पिछले तीन वर्षों के दौरान देश में सीवर और या सेप्टिक टैंकों की सफाई करते समय कुल 288 लोगों की मौत हो गयी. सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास आठवले ने एक सवाल के लिखित जवाब में राज्यसभा को यह जानकारी दी. उन्होंने कहा कि राज्यों से मिली रिपोर्टों के अनुसार 31 अगस्त 2020 तक पिछले तीन वर्षों के दौरान सीवर या सेप्टिक टैंकों की सफाई करते समय 288 कर्मियों की मौत हो गयी.

आठवले ने कहा कि 18 राज्यों के 194 जिलों में 2018-19 के दौरान मैला ढोने वाले लोगों का एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण कराया गया था. उन्होंने बताया कि आंकड़ों के अनुसार सर्वेक्षण में 51,835 मैला ढोने वाले लोगों की पहचान की गई. जिनमें से 24,932 लोगों की उत्तर प्रदेश में पहचान की गई थी.

मैला ढोने की प्रथा को खत्म करने की दिशा में काम करनेवाले संगठन ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन ने कहा कि, कानून सही तरीके से लागू नहीं होने से सफाई कर्मी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं. मैगसायसाय पुरस्कार से सम्मानित कार्यकर्ता ने कहा, ‘मैला ढोना रोजगार निषेध व पुनर्वास अधिनियम के तहत किसी एक भी व्यक्ति को अब तक सजा नहीं मिली है. अधिनियम चुनावी घोषणा पत्र के वादों की तरह झूठे वादे नहीं होने चाहिए.’

दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच के सचिव संजीव कुमार का कहना है कि, कानून का क्रियान्वयन सबसे बड़ी चुनौती है. उन्होंने कहा, ‘सीवर या सेप्टिक टैंक के भीतर किसी व्यक्ति के प्रवेश पर पूरी तरह से रोक लगनी चाहिए और इस काम में मशीन को लगाया जाना चाहिए. वैसे भी मामले ज्यादातर मामलों में सामने आए हैं कि जब इन टैंकों में सफाई कर्मीं उतरते हैं, तो उन्हें कई बार जहरीली गैस की वजह से सांस लेने में तकलीफ होती है. और वे अपनी ऊर्जा जुटाने में बाद में सक्षम नहीं हो पाते. जो लोग जिंदा बचते हैं, उन्हें काफी दर्द में जीवन गुजारना पड़ता है.’ कुमार ने कहा कि ज्यादातर मामलों में उन्हें न तो उचित प्रशिक्षण मिला होता है, और न ही उनके पास उचित उपकरण होते हैं.

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