ऐप (App) आधारित टैक्सी, फ़ूड डिलीवरी, कुरियर जैसी सेवाओं के लिए काम करने वाले श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ देने पर सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है. इस तरह की सेवाओं में लगे लोगों को असंगठित श्रमिक के रूप में पंजीकृत करने की मांग पर कोर्ट ने केंद्र सरकार और कंपनियों को नोटिस जारी किया है.
इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स और हैदराबाद के रहने वाले 2 ओला कैब चालकों की याचिका में कहा गया था कि ओला (Ola), उबर (Uber), स्विगी (Swiggy), जोमैटो (Zomato) आदि ड्राइवर या खाना सप्लाई करने वालों के साथ जो एग्रीमेंट करते हैं, उसमें उन्हें कर्मचारी जैसा दर्जा नहीं दिया जाता. दुनिया के लगभग सभी विकसित देशों में यह मान लिया गया है कि एग्रीमेंट में भले ही कुछ भी लिखा जाए, लेकिन इन सेवाओं के लिए काम कर रहे लोगों और कंपनी में कर्मचारी और नियोक्ता का ही संबंध है.
याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने जस्टिस एल नागेश्वर राव और बी आर गवई की बेंच को बताया कि अपनी-अपनी कंपनी के लिए सड़क पर दिन-रात भाग रहे इन लोगों को किसी भी सामाजिक सुरक्षा योजना का लाभ नहीं मिल पाता है. इसलिए कोर्ट सरकार को निर्देश दे कि इन सभी लोगों को ‘अनऑर्गेनाइज़्ड वर्कर्स सोशल वेलफेयर सिक्युरिटी एक्ट, 2008 की धारा 2(m) और 2(n) के तहत असंगठित या दिहाड़ी मज़दूर माना जाए.
सुनवाई के दौरान जजों ने कहा कि ‘कोड ऑफ सोशल सिक्युरिटी, 2020’ के तहत गिग वर्कर्स यानी ऑनलाइन डिलीवरी सेवा, टैक्सी सर्विस से जुड़े लोगों की भी सामाजिक सुरक्षा की बात कही गई है. इस पर वकील ने कहा कि कहीं भी इन लोगों को मज़दूर के रूप में रजिस्टर्ड नहीं किया गया है. इसके चलते जब कोरोना के दौरान रोज़गार का संकट झेल रहे असंगठित मज़दूरों को आर्थिक सहायता देने की बात हुई तो इसका लाभ गिग वर्कर्स को नहीं मिला. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना से भी इन लोगों को मदद नहीं मिल पाई.
याचिकाकर्ताओं ने यह मांग भी की है कि ऑनलाइन सर्विस कंपनियों को फिलहाल हर दिन अपने लिए काम करने वाले लोगों को कुछ आर्थिक सहायता देने के लिए भी कहा जाए. जजों ने थोड़ी देर दलीलें सुनने के बाद याचिका को विचार योग्य माना और सभी पक्षों को नोटिस जारी कर दिया.