एक पांच पेज की यह रिपोर्ट ही मनीष सिसोदिया के फंसने का सबसे बड़ा हथियार बनी। यह मामला सतर्कता विभाग की जांच रिपोर्ट के बाद खुला था और मामले में जांच की सिफारिश मुख्य सचिव ने भेजी थी। यह सीधे तौर पर दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र का मामला था और इस विभाग की सीधी देख-रेख उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के पास थी। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि मामले में सरकार को भारी वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा था।
रिपोर्ट के आधार पर ही दावा किया गया था कि आबकारी नीति के पैसे की मदद से पंजाब व गोवा का चुनाव आम आदमी पार्टी ने लड़ा था। मामले में मुख्य सचिव ने 8 जुलाई 2022, नियम 57 का हवाला देते हुए एक पांच पेज की रिपोर्ट उपराज्यपाल व मुख्यमंत्री को भेजी थी। इसके बाद आबकारी नीति को लेकर बवाल शुरू हआ था और यही उपमुख्यमंत्री के खिलाफ मामला दर्ज किए जाने का आधार भी बना था।
मामले में उपराज्यपाल ने भी दिल्ली सरकार के सतर्कता विभाग को विस्तृत जांच के आदेश सौंपे थे। करीब बारह दिन पर मामले की रिपोर्ट सतर्कता विभाग ने उपराज्यपाल को सौंप दी थी और उपराज्यपाल ने मामले की सीबीआइ जांच की मंजूरी प्रदान कर दी थी। इसके बाद ही सिसोदिया को जेल भेजे जाने का आधार भी तैयार हुआ था।
करीब 100 करोड़ के नुकसान का था आंकलन : मामले की रिपोर्ट में सामने आया था कि पूरे मामले में जानबूझकर गड़बड़ियां की गई थीं और इस कारण सरकार को वित्तीय नुकसान हुआ था। इससे निर्यात फीस, विदेशी शराब अधिक लाभ और शुष्क दिवस की कमी आदि शामिल था। लाइसेंस फीस में राहत व शुष्क दिवस में कमी करके करीब सौ करोड़ के नुकसान का आंकलन किया गया था।
21 से घटाकर तीन कर दिए थे शुष्क दिवस : नई आबकारी नीति ने दिल्ली में शुष्क दिवसों की संख्या को कम कर दिया था। नई नीति आने से पहले दिल्ली के अंदर शुष्क दिवसों की संख्या 21 थी, जिसे नीति के तहत घटाकर केवल तीन कर दिया गया था। राहत के लिए मंत्रिमंडल या उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं थी : आबकारी नीति के तहत ऐसे लाइसेंस धारक जिन पर कार्रवाई की जानी चाहिए थी।