पहली बार G-20 शिखर सम्मेलन का आयोजन राजधानी दिल्ली में हुआ. वसुधैव कुटुम्बकम के जरिए, वन अर्थ-वन फैमिली-वन फ्यूचर वाले विजन के जरिए इसे मेगा शो बनाने का काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया. इसके साथ-साथ पीएम ने अपनी जबरदस्त कूटनीति के जरिए चीन को चारो खाने चित भी किया. जिनपिंग को ठीक इसी तरह दुनिया से अलग-थलग भी कर किया. प्रधानमंत्री मोदी के दांव से बीजिंग में खलबली मच गई. ड्रैगन छटपटाने लगा. ये पीएम मोदी का मैजिक ही है, जिसके चलते भारत के साथ अमेरिका-रूस-फ्रांस जैसे शक्तिशाली मुल्क खड़े हो गए. वहीं दूसरी तरफ चीन बेबस-बेचारा बन गया. आखिर कैसे मोदी युग के शंखनाद के साथ ही चीन के विस्तार का अंतकाल हुआ, कैसे जिनपिंग के ड्रीम प्रोजेक्ट पर पीएम ने गहरी चोट दी?
G-20 समिट में आकार लेने वाला इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (IMEC) प्रोजेक्ट चीन के विस्तारवाद और हड़पनीति पर हथौड़ा होगा. प्रोजेक्ट IMEC के तहत भारत के पोर्ट को जलमार्ग के जरिए UAE से जोड़ा जाएगा. इसके बाद UAE को सड़क और रेल रूट के जरिए सऊदी अरब से जोड़ा जाएगा. सऊदी अरब को भी सड़क और रेल के जरिए जॉर्डन से और फिर जॉर्डन को सड़क और रेल रूट के जरिए इजरायल से कनेक्ट किया जाएगा.
इजरायल से जलमार्ग के जरिए भूमध्य सागर से होते हुए इटली को जोड़ा जाएगा और सबसे आखिर में इटली को सड़क और रेल रूट के जरिए फ्रांस से कनेक्ट किया जाएगा. इस प्रोजेक्ट में इजरायल और जॉर्डन दोनों देशों को बाद में जोड़ा जाएगा. IMEC प्रोजेक्ट के जरिए प्रधानमंत्री मोदी ने वन अर्थ, वन फैमिली और वन फ्यूचर की तरफ बड़ा कदम बढ़ाया. इसके साथ-साथ ड्रैगन के सबसे बड़े सपने पर ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर वाली कूटनीति से सॉलिड प्रहार किया क्योंकि BRI चीन का सबसे बड़ा रेल रोड और समुद्री मार्ग तैयार करने का प्रोजेक्ट है. इसका मुख्य हिस्सा क्या है, पहले आप ये समझिए.
150 से ज्यादा देश चीन के BRI समझौते पर कर चुके हस्ताक्षर
ये प्रोजेक्ट चीन के शियान से शुरू होगा, मंगोलिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, तुर्किए, बुल्गारिया, रोमानिया, यूक्रेन, बेलारूस और पोलैंड होते हुए ये पूरे यूरोप को जोड़ेगा. चीन का प्लान इससे कहीं ज्यादा बड़ा है. ये समुद्री मार्ग से अटलांटिक महासागर से होते हुए लैटिन अमेरिका, उसके बाद अफ्रीका से श्री लंका, बांग्लादेश और म्यांमार होते हुए दोबारा चीन तक पहुचने का प्लान है.
साल 2013 में चीन ने BRI प्रोजेक्ट का आगाज किया. बीते 10 सालों में दुनिया के 150 से ज्यादा देश चीन के साथ BRI समझौते पर हस्ताक्षर कर चुके हैं. इसी साल अक्टूबर में चीन राजधानी बीजिंग में तीसरे बेल्ट एंड रोड फोरम की मेजबानी भी करने वाला है, लेकिन उससे पहले ही पीएम मोदी के दांव ने जिनपिंग के पैरों तले जमीन खिसका दी. शायद यही वजह है कि BRI समझौते से जुड़े कई देश अब इससे पीछे हटने की तैयारी कर रहे हैं.
इटली का चीनी प्रोजेक्ट से हो रहा मोह भंग
सूत्रों की मानें तो G-20 समिट के दौरान इटली और चीन में द्विपक्षीय वार्ता हुई, जिसमें इटली की PM ने BRI प्रोजेक्ट से हटने के संकेत दिए. इटली का मानना है कि BRI प्रोजेक्ट से अपेक्षित परिणाम नहीं मिले. साल 2019 में इटली ने आधिकारिक तौर पर BRI समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन अब इटली का भी चीनी प्रोजेक्ट से मोह भंग होता दिखाई दे रहा है और सिर्फ इटली ही नहीं बल्कि दुनिया के बाकी देश भी ये समझ चुके हैं कि चीन की चतुराई कर्ज का फंदा साथ लाती है और फिर मुल्कों को तबाह कर देती है.
आपको बता दें कि सिर्फ BRI प्रोजेक्ट को ही पीएम मोदी ने तगड़ा झटका नहीं दिया, बल्कि इसके साथ-साथ अफ्रीकी यूनियन को G-20 का स्थायी सदस्य बनाकर ड्रैगन की विस्तारवादी सोच पर नकेल कस दी. धीरे-धीरे चीन का टारगेट अफ्रीकी देशों को कर्ज देकर गुलाम बनाने का था, लेकिन जिनपिंग अपने मकसद में कामयाब हो पाते उससे पहले ही प्रधानमंत्री मोदी ने AU-55 के जरिए चीन की डर्टी साजिश नेस्तनाबूद कर दी.
1963 में अफ्रीकी देशों का संगठन बनाया गया
G-20 समिट के पहले सेशन में भारत ने अफ्रीकन यूनियन को G20 का स्थायी सदस्य बनाने का प्रस्ताव रखा. बतौर अध्यक्ष सभी देशों की सहमति से PM मोदी ने जैसे ही इसे पारित किया अफ्रीकन यूनियन के हेड अजाली असोमानी जाकर PM मोदी के गले लग गए. आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि अफ्रीकी यूनियन को G-20 में शामिल करने के प्रस्ताव का समर्थन यूरोपियन यूनियन के साथ-साथ चीन ने भी किया.
PM मोदी के इस एक फैसले का फायदा अफ्रीका के 55 देशों को होगा क्योंकि साल 1963 में अफ्रीकी देशों का संगठन बनाया गया. इस संगठन में अफ्रीका के करीब 55 देश शामिल हुए. संघ का मकसद गुलाम अफ्रीकी देशों को आजाद कराना था. लीबिया के तानाशाह मुअम्मर गद्दाफी इसके फाउंडर थे. अफ्रीकी देशों के बीच बातचीत के तौर पर इस संघ की नींव रखी गई थी. मगर कुछ सालों बाद आर्थिक और कूटनीतिक से जुड़े मसले भी अफ्रीकी यूनियन में डिस्कस होने लगे. ऐसे में इन सभी अफ्रीकी देशों का G-20 में शामिल होना प्रधानमंत्री मोदी के विजन को दर्शाता है.
एक तरफ पीएम मोदी ने चीन पर चढ़ाई की, तो वहीं शिखर सम्मेलन में कई विरोधियों को एक साथ इकट्ठा करके भी G-20 समिट को ऐतिहासिक बना दिया. वो इसलिए कि G-20 समिट के साझा घोषणा पत्र पर अमेरिका-रूस-फ्रांस-चीन जैसे सभी देशों ने सहमित जताई. 37 पेज के घोषणा पत्र में कई अहम बातों का जिक्र किया गया था.
- रूस का नाम लिए बिना 7 संदेश
- सभी देश संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों को मानें
- UNSC और UNA के प्रस्तावों पर अमल हो
- किसी भी देश की क्षेत्रीय अखंडता को स्वीकारें
- देशों की राजनीतिक स्वतंत्रता की अनदेखी न हो
- क्षेत्रीय अधिग्रहण की धमकी से बचना होगा
- बल के प्रयोग से संप्रभुता को चुनौती मान्य नहीं
- परमाणु हथियारों का उपयोग या धमकी अस्वीकार्य
- आपको बता दें कि रूस का नाम लिए बगैर बेहद ही सधे हुए अंदाज में अपनी बात रखी क्योंकि नवंबर 2022 में इंडोनेशिया समिट में जारी घोषणा पत्र में रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर सदस्य देशों के बीच सहमति नहीं बन पाई थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ और शायद यहीं वजह है कि समिट के खत्म होने के बाद रूस का स्टैंड भी सकारात्मक रहा. यानी पीएम मोदी ने अपने मैजिक से न सिर्फ कुटनीतिक जीत हासिल की, बल्कि इसके साथ-साथ ये भी बता दिया कि असली विश्वगुरू भारतवर्ष ही है.