उत्तर प्रदेश : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज यावी चार फरवरी को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में आयोजित चौरी-चौरा शताब्दी समारोह में हिस्सा लेंगे. पीएम मोदी इसमें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जुड़ेंगे. बता दें कि आज से 100 साल पहले इसी दिन चौरी-चौरा की घटना हुई थी जो आजादी की लड़ाई की ऐतिहासिक घटनाओं में एक है. इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी चौरी-चौरा शताब्दी समारोहों को समर्पित एक डाक टिकट जारी करेंगे. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी कार्यक्रम में मौजूद रहेंगे.
चौरी-चौरा शताब्दी समारोहों को मनाने का फैसला उत्तर प्रदेश सरकार ने ही लिया है. राज्य के सभी 75 जिलों में इस साल चार फरवरी से अगले साल चार फरवरी तक विभिन्न समाराहों का आयोजन किया जाएगा. चौरी चौरा गोरखपुर का एक गांव है. आजादी के आंदोलन के दौरान यह गांव ब्रिटिश पुलिस तथा स्वतंत्रता सेनानियों के बीच हुई हिंसक घटनाओं के कारण चर्चा में रहा. चौरी चौरा में 4 फरवरी, 1922 को स्थानीय पुलिस और राजनीतिक कार्यकर्ताओं के बीच अप्रत्याशित संघर्ष हुआ और फिर क्रोध से भरी हुई भीड़ ने चौरी-चौरा के थाने में आग लगा दी और 22 पुलिसकर्मियों को जिंदा जला दिया था. चौरी चौरा की इस घटना से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा चलाये गये ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ को आघात पहुंचा, जिसके कारण उन्हें इसे स्थागित करना पड़ा था.
इसी घटना के बाद भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक नया अध्याय जुड़ा और भारत की आजादी में शामिल क्रांतिकारियों की ‘नरम दल’ और ‘गरम दल’ बने.
इन रियासतों ने लिया था अंग्रेजों से लोहा
सतासी: देवरिया मुख्यालय से 23 किमी दूर रुद्रपुर और आस-पास के करीब 87 गांव उस समय राजा उदित नारायण सिंह के अधीन थे. 8 मई 1857 को इन्होंने अपने सैनिकों के साथ गोरखपुर से सरयू नदी के रास्ते आजमगढ़ जा रहे खजाने को लूटकर फिरंगियों के साथ जंगे एलान करने की घोषणा कर दी। साथ ही अपनी सेना के साथ घाघरा के तट पर मोर्चा संभाल लिया.
तत्कालीन कलेक्टर डब्ल्यू पीटरसन इस सूचना से आग बबूला हो गया. बगावत को कुचलने और राजा की गिरफ्तारी के लिए उसने एक बड़ी फौज रवाना की. इसकी सूचना राजा को पहले ही लग गयी. उन्होंने ऐसी जगह मोर्चेबंदी की जिसकी भनक अंग्रेजों को नहीं लगी. अप्रत्याशित जगह पर जब फिरंगी फौज से उनकी मुठभेड़ हुई तो अंग्रेजी फौज के पांव उखड़ गए. राजा के समर्थक ब्रिटिश नौकाओं द्वारा भेजे जाने वाली रसद सामग्री पर नजर रखते थे. मौका मिलते ही या तो उसे लूट लेते थे या नदी में डूबो देते थे. सतासी राज को कुचलने के लिए बिहार और नेपाल से सैन्य दस्ते मंगाने पड़े.
नहरपुर: यहां के राजा हरि प्रसाद सिंह ने 6 जून 1857 को बड़हलगंज चौकी पर कब्जा कर वहां बंद 50 कैदियों को मुक्त करा कर बगावत का बिगुल फूंका. साथ ही घाघरा के घाटों को भी अपने कब्जे में ले लिया. उसी समय पता चला कि वाराणसी से आए कुछ अंग्रेज सैनिक दोहरीघाट से घाघरा पार करने वाले हैं. राजा के इशारे पर उनके वफादार नाविकों ने उन सबको नदी में डूबो दिया. सूचना पाकर स्थानीय प्रशासन बौखला गया.
उन्होंने दोहरीघाट स्थित नीलकोठी से तोप लगावाकर नरहरपुर के किले को उड़वा दिया. इस गोलाबारी में जान-माल की भी भारी क्षति हुई. राजा हाथी पर बैठकर सुरक्षित बच गए. कहा जाता है कि तपसी कुटी में उस समय संन्यासी के रूप में रहने वाले व्यक्ति ही राजा थे. यहीं से तपसी सेना बना कर वे अंग्रेजों से लोहा लेते रहे.
बढ़यापुर: गोला-खजनी मार्ग के दक्षिण-पश्चिम स्थित बढ़यापुर स्टेट ने भी अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया. 1818 में कर बकाया होने के कारण अंग्रेजों ने राज्य का कुछ हिस्सा जब्त कर उसे पिंडारी सरदार करीम खां को दे दिया. पहले से ही नाराज चल रहे यहां के राजा तेजप्रताप चंद ने 1857 में जब अंग्रेजों के खिलाफ बगावत शुरू की तो राजा ने भी संघर्ष की घोषणा कर दी. इस वजह से बाद के दिनों में उनको राज-पाट से हाथ धोना पड़ा. 1857 की बगावत को कुचलने के बाद भी छिटपुट विद्रोह जारी रहा. इतिहास को यू टर्न देने वाली चौरीचौरा की घटना भी इनमें से ही एक है.