विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा ‘लांसेट’ पत्रिका में प्रकाशित एक बयान में यह जानकारी सामने आई है। कैंसर पर शोध करने वाली अंतरराष्ट्रीय एजंसी ने एस्बेस्टस (रेशेदार खनिज), विकिरण और तंबाकू के साथ ही शराब को उच्च जोखिम वाले समूह-1 ‘कार्सिनोजेन’ (कैंसर कारक) के रूप में वर्गीकृत किया है, जो दुनियाभर में कैंसर रोग का कारण बन रहे हैं।
एजंसी ने पाया कि शराब का सेवन कम से कम सात प्रकार के कैंसर का कारण बनता है, जिसमें आंत का कैंसर और स्तन कैंसर सबसे आम हैं। शराब जैविक तंत्र के माध्यम से कैंसर का कारण बनता है क्योंकि यौगिक शरीर में टूट जाते हैं, जिसका अर्थ है कि अल्कोहल युक्त कोई भी पेय, चाहे इसकी मात्रा और गुणवत्ता कैसी भी हो, कैंसर का खतरा पैदा करता है।
डब्ल्यूएचओ के बयान के मुताबिक, यूरोपीय क्षेत्र में वर्ष 2017 के दौरान कैंसर रोग के 23,000 नए मामले सामने आए थे, जिनमें से 50 फीसद का कारण शराब की हल्के से मध्यम (प्रतिदिन शुद्ध अल्कोहल की 20 ग्राम से कम मात्रा) मात्रा का सेवन रहा था। बयान में कहा गया, ‘वर्तमान में उपलब्ध साक्ष्य उस सीमा का संकेत नहीं दे सकते, जिस पर शराब के कैंसर कारक वाले प्रभाव शुरू होते हैं और शरीर में नजर आने लगते हैं।’
डब्लूएचओ ने कहा कि यह साबित करने के लिए ऐसा कोई अध्ययन नहीं है जिससे पता चले कि शराब सेवन का असर हृदय रोगों और टाइप-टू मधुमेह की तुलना में कैंसर रोग के लिए ज्यादा जोखिम भरा होता है, लेकिन यह मानने के पर्याप्त सबूत हैं कि भारी मात्रा में शराब पीने से हृदय रोगों का खतरा निश्चित तौर पर बढ़ जाता है। शोध में यह भी पाया गया है कि यूरोपीय क्षेत्र में शराब की खपत सबसे अधिक है और 20 करोड़ से अधिक लोगों को शराब के कारण कैंसर होने का खतरा है।