दिल्ली HC ने आत्महत्या की थ्योरी मानने से किया इनकार, UP के 5 पुलिसकर्मियों की 10 साल की सजा बरकरार

हत्या और आत्महत्या के बीच झूलते मुकदमे में दिल्ली हाईकोर्ट ने यूपी की ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही माना है, जिसके चलते दिल्ली हाईकोर्ट ने यूपी पुलिस के आरोपी पांच पुलिसकर्मियों को पूर्व में सुनाई गई 10 साल की सजा को बरकरार रखा है. हालांकि, इस मामले में एक सब-इंस्पेक्टर के खिलाफ सबूत न मिलने के चलते उसे ब-इज्जत बरी किया जा चुका है. यह मुकदमा दिल्ली से सटे नोएडा के सेक्टर-20 थाने में पुलिस हिरासत में हुई एक मौत के सिलसिले में दर्ज हुआ था.

चूंकि मुलजिम यूपी पुलिस के मुलाजिमान थे. उन्हीं की कस्टडी में पीड़ित की मौत हो गई थी, इसलिए पीड़ित पक्ष की प्रार्थना पर सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे की सुनवाई, यूपी से हटाकर दिल्ली हाईकोर्ट के हवाले कर दी थी. अब इस मुकदमे में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले ने यूपी पुलिस के आरोपी सभी पांच पुलिसकर्मियों की 10 साल की सजा पर अपनी मुहर लगा दी है. हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले पर अपनी सहमति जताते हुए 10 साल की सजा तो बरकरार रखी. इसके साथ ही पीड़ित पक्ष की उस अर्जी को खारिज कर दिया, जिसमें पुलिस कस्टडी में हुई मौत को (गैर इरादतन हत्या के मामले को), हत्या यानी धारा-302 के तहत मुकदमा चलाने की मांग की गई थी.

26 जून 2006 को हुई थी यह घटना
यह घटना साल 2006 में नोएडा के सेक्टर 20 थाना-कोतवाली में घटी थी. घटनाक्रम के मुताबिक, 26 साल के सोनू को 1 सितंबर 2006 को सादे कपड़ों में मौजूद पुलिसवालों ने निजी वाहन में जबरदस्ती उठा लिया था. उसे पहले सेक्टर-31 निठारी पुलिस चौकी ले गए. उसके बाद 2 सितंबर 2006 को सोनू को पुलिसवालों ने तड़के साढ़े तीन बजे नोएडा सेक्टर-20 थाने की हवालात में ले जाकर बंद कर दिया. जहां कुछ ही देर बाद संदिग्ध हालातों में उसकी मौत हो गई. पुलिस ने उसे आत्महत्या का मामला करार देने की कोशिश की थी.

पुलिस ने कोर्ट में जो थ्योरी दी, वो हुई फेल
पुलिस का दावा था कि सोनू डकैती के मामले में वांछित था. सोनू की मौत के मामले का मुकदमा जब कोर्ट में पहुंचा तो वहां पुलिस कानूनन बुरी तरह फंस गई. पुलिस की वो थ्योरी भी कोर्ट में फेल हो गई, जिसमें उसने कोशिश की थी कि सोनू आत्महत्या करके मरा था, न कि उसे पुलिसवालों ने गैर-कानूनी हिरासत में टॉर्चर किया. इसलिए उसकी मौत हो गई. कोर्ट ने जब पुलिस का रिकॉर्ड खंगाला तो उसमें भी कई विसंगतियां, सोनू की मौत की झूठी पुलिसिया कहानी की चुगली करती मिलीं. आरोपी पुलिसवालों ने खुद की खाल कानून के चाबुक से बचाने के लालच में, सामान्य डायरी में ही कई मनगढ़ंत गलत एंट्री दर्ज डाली. ताकि पुलिस वाले खुद को बेदाग और मर चुके सोनू को गलत साबित कर सकें.

हवालात में आत्महत्या करने को मजबूर हो गया था सोनू
जबकि पीड़ित पक्ष का कहना था कि सोनू की मौत पुलिसवालों द्वारा गैर-कानूनी रूप से हिरासत में दी गई यातनाओं से हुई थी. पुलिस वाले उसे झूठे मुकदमे में फंसाने का जोर दे रहे थे और उसके ऊपर शारीरिक अत्याचार पुलिस ने उस हद तक किए कि सोनू हवालात में आत्महत्या करने को मजबूर हो गया. सोनू के बदन पर मौजूद चोटों के निशान, आरोपी पुलिसकर्मियों द्वारा गैर कानूनी हिरासत में उसके ऊपर ढहाए गए जुल्म की चुगली कर रहे थे. दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि सोनू के बदन पर मौजूद चोटों को ध्यान में रखते हुए यह कहना ठीक नहीं है कि वे चोटें आत्महत्या के प्रयास के दौरान आईं होंगी और फिर प्रशिक्षित पुलिसकर्मियों ने सोनू को जब बचाने की कोशिश की, तब चोटें और ज्यादा लग गई होंगी.

इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया है, जिसमें सब-इंस्पेक्टर विनोद कुमार पांडे को लोअर कोर्ट से बरी कर दिया गया, क्योंकि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला. यहां बताना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट ने साल 2011 में यह मुकदमा आगे की सुनवाई के लिए दिल्ली ट्रांसफर कर दिया था, क्योंकि जिस सूबे की कोर्ट में सुनवाई होनी थी, आरोपी पुलिसकर्मी उसी राज्य के सरकारी कर्मचारी थे. ऐसे में पीड़ित पक्ष को आशंका थी कि उसे न्याय नहीं मिलेगा.

ट्रायल कोर्ट ने सुनाई थी 10 साल की सजा
ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले में उस दलील को भी हाईकोर्ट ने सही माना है, जिसमें कहा गया था कि आरोपी व्यक्तियों द्वारा गिरफ्तारी/अपहरण के बाद पीड़ित के साथ क्या हुआ, यह आरोपी व्यक्तियों की विशेष जानकारी में था. और विश्वसनीय स्पष्टीकरण नहीं दिए जाने के कारण अदालत ने यह अनुमान लगाने में सही किया कि पुलिस ही सोनू की मौत के लिए जिम्मेदार थी. उसके अपहरण से लेकर अवैध हिरासत में हुई सोनू की मौत तक. आईपीसी की धारा 304 के भाग-1 के अंतर्गत आरोपी पुलिसवालों को ट्रायल कोर्ट से सुनाई गई 10 साल की सजा को दिल्ली हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा है.

दिल्ली हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता और न्यायमूर्ति अनीश दयाल की पीठ ने 60 पन्नों में दिए अपने फैसले में लिखा है कि, आरोपी पुलिसकर्मी आईपीसी की धारा-302 यानी कत्ल के जिम्मेदार तो नहीं हैं, लेकिन वे अपनी जानकारी में किसी की मौत के लिए धारा-304 के दोषसिद्धि साबित होकर 10 साल की ब-मशक्कत सजा के जिम्मेदार तो हैं. यहां बताना जरूरी है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने मार्च 2019 में यहां एक ट्रायल कोर्ट द्वारा, आरोपियों को दोषसिद्धि और सुनाई गई 10 साल की सजा के खिलाफ मुजरिमों द्वारा सजा के खिलाफ दाखिल अपील को भी खारिज कर दिया. जिन पुलिसकर्मियों को 10 साल की सजा सुनाई गई है, उनमें शामिल एक व छठे इंस्पेक्टर कुंवर पाल सिंह को, पीड़ित सोनू के अपहरण के लिए ट्रायल कोर्ट से सुनाई जा चुकी तीन साल की सजा को भी हाईकोर्ट ने बरकरार रखा है.

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