मोदी-शाह का नक्सल उग्रवाद पर सीधा प्रहार, बीते 8 सालों में नक्सली हिंसा में 52% की कमी

देश के वामपंथी उग्रवाद का गढ़ माने जाने वाले छत्तीसगढ़ के जगदलपुर और सुकमा में नक्सलियों को गृहमंत्री अमित शाह ने खुली चुनौती दी है. CRPF के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ की 25 मार्च को सीआरपीएफ का रेजिंग डे नक्सलियों के गढ़ जगदलपुर में मनाया गया. इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि देश का कोई गृहमंत्री बस्तर रीजन के जगदलपुर जैसे दुरूह अंदुरूनी नक्सलवाद से प्रभावित सीआरपीएफ कोबरा बटालियन के कैंप में जवानों के साथ रात बिताया हो.

इतना ही नहीं, जगदलपुर पहुंचे गृहमंत्री अमित शाह ने ये निर्णय लिया कि जगदलपुर से आगे वो नक्सलवाद उग्रवाद से प्रभावित सुकमा के उस कोर इलाके के सबसे अंदुरूनी सीआरपीएफ के फॉरवर्ड पोस्ट पर जाएंगे, जहां देखेंगे कि वहां जवान किस कठिन परिस्थिति में काम करते है. वहां विकास का काम किस गति से हो रहा है. इसका जायजा भी लेंगे. इस क्रम में उन्होंने निर्णय लिया कि सुकमा के पोटकपल्ली में बने सीआरपीएफ के नए बने कैंप में जायेंगे और वहां मीटिंग करेंगे.

सुकमा का पोटकपल्ली नक्सल प्रभावित
सुकमा का पोटकपल्ली इलाका वामपंथी नक्सलवाद से प्रभावित वो इलाका है, जहां सीआरपीएफ ने काफी मशक्कत के बाद पिछले साल अपना पक्का कैंप बनाने में सफलता पाई।.गृहमंत्री अमित शाह की इस सुदूरवर्ती घोर नक्सली बेल्ट में यात्रा का साक्षी टीवी 9 भारतवर्ष भी बना. हम उनके साथ उस यात्रा में साथ रहे और जहां सामान्य तौर पर एक आम प्रवासी को जाना मुश्किल होता है. हमने उन जगहों का दौरा किया और वहां के हालात को देखा और वहां पर हो रहे विकास के कामों को जाना.

सुकमा पहुंचे थे गृह मंत्री शाह
जगदलपुर से करीब 225 किलोमीटर दूर घनघोर जंगलों के बीच सुकमा-बीजापुर इलाके के पोटकपल्ली इलाका घोर नक्सलवाद प्रभावित इलाका है. यहां से 40/50 किलोमीटर आगे तेलंगाना की सीमा शुरू हो जाता है. गृह मंत्री अमित शाह हवाई मार्ग से लगभग 45 मिनट की यात्रा कर सुकमा के घने जंगलों में बने सीआरपीएफ के पोटकपल्ली कैंप में पहुंचे थे. स्ट्रेटेजिक ढंग से ये कैंप कितने महत्वपूर्ण जगह पर बनी है इसका अंदाजा हम इस बात से लगा सकते हैं कि करीब 1 साल में इस कैंप पर नक्सलियों ने 10 बार हमला किया.

पोटकपल्ली सीआरपीएफ कैंप की कहानी
इस कैंप को नक्सली अपने अस्तित्व के लिए चुनौती मानते हैं. इसका निर्माण ना हो पाए इसके लिए नक्सलियों ने पूरी ताकत झोंक दी लेकिन कैंप का निर्माण हो गया. छत्तीसगढ़ के घनघोर जंगलों में नक्सलियों के आंखों में दिन रात चुभने वाला पोटकपल्ली सीआरपीएफ कैंप जब सालभर पहले बनकर तैयार हुआ तभी गृहमंत्री अमित शाह ने वहां तैनात अफसरों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर ये वादा किया था कि वो इसे देखने जरूर जायेंगे. इस इलाके के नक्सलियों का सबसे बड़ा सरगना और कमांडर हिड़मा ने पोटकपल्ली कैंप को नहीं बनने देने की पूरी कोशिश की, लेकिन 25 मार्च को इतिहास बदल चुका था और वहां कैंप ऑफिस पहुंच कर गृहमंत्री अमित शाह ने केंद्रीय गृह सचिव, सीआरपीएफ के वहां तैनात अधिकारी, जिले के डीएम के साथ बैठक कर वहां के हालात का जायजा लिया.

शाह का मौजूद अधिकारियों को निर्देश
नक्सलियों के गढ़ में बैठकर गृहमंत्री ने वहां के आम लोगों के जीवन में आ रहे बदलाव को जानने की कोशिश कर रहे थे. वो जानना चाहते थे कि कैंप बनने से वहां विकास की गति को कितना बढ़ावा मिला है. वहां के लोगों को सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाएं मिल पा रही या नहीं. गृहमंत्री का वहां मौजूद अधिकारियों को निर्देश साफ था कि सरकार द्वारा चलाए जा रहे सभी वेलफेयर स्कीम वहां के लोकल लोगों तक निर्बाध ढंग से पहुंचना प्राथमिकता होनी चाहिए. गृहमंत्री ने निर्देश दिया की सालों से जिन आदिवासी लोगों ने सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठाया है उन तक सरकारी वेलफेयर स्कीम की सभी सुविधाएं पहुंचनी चाहिए. उनके अंदर सरकार में भरोसा बढ़ना चाहिए.

बिना प्लान के आगे बढ़े गृह मंत्री शाह
इस मीटिंग के दौरान जब गृहमंत्री को पता चला कि सीआरपीएफ कैंप के पास ही उस इलाके में हो रहे विकास के कामों को जानने और देखने का नमूना मौजूद है. गृहमंत्री ने बिना किसी प्लान के ही वहां तुरंत जाने की इच्छा जाता दी. सीआरपीएफ अधिकारियों के हाथ पांव फूल गए.क्योंकि उन्हें उस इलाके के संकटों के बारे में हकीकत मालूम थी. जहां कैंप पर ही नक्सली हमला होता रहा हो वहां से बाहर की दुनिया कितनी खतरनाक हो सकती है. खैर, गृहमंत्री उठ खड़े हुए और सबसे पहले उस पूरे कैंप का मुआयना किया. कैंप के अंदर मेडिकल फैसिलिटी का मुआयना किया. वहां तैनात डॉक्टर और मेडिकल स्टॉफ से बात की. वहां उपलब्ध मेडिकल सुविधाओं के बारे में जाना. कैंप में बने हॉस्पिटल के अलावा हथियार और असलहा स्टोर का निरीक्षण किया और फिर निकल गए कैंप से बाहर.

शाह का स्कूल दौरा
सबसे पहले पोटकपल्ली सीआरपीएफ कैंप से करीब 500 मीटर की दूरी पर बने स्कूल का दौरा किया. स्कूल के क्लासरूम में ब्लू ड्रेस में बच्चे बच्चियां मौजूद थे. स्कूल में लगे चार्ट में गाय के ऊपर उंगली रखते हुए गृह मंत्री ने बच्चों से पूछा कि ये कौन सा पशु है. हांलाकि वहां मौजूद स्तब्ध बच्चे पशु का नाम नाम नहीं बता पाए लेकिन गृहमंत्री शाह ने जब उन बच्चों को बिस्किट का पैकेट दिया और सर पर हाथ रखा तो वो खुश नजर आए. स्कूल में मौजूद टीचर जिन्हे शिक्षादूत कहा जाता है. उनसे गृहमंत्री ने जानकारी ली कि बच्चों को मिड डे मील मिलता है या नहीं. शिक्षादूत ने बताया कि रेगुलर मिड डे मील दिया जाता है.

हेल्थ सेंटर भी पहुंचे अमित शाह
गृहमंत्री अमित शाह का अगला पड़ाव वहीं पास में बने आयुष्मान भारत हेल्थ सेंटर रहा. आंगनबाड़ी स्कूल से महज 300 मीटर की दूरी पर बने आयुष्मान भारत हेल्थ सेंटर की ओर गृहमंत्री पैदल ही निकल पड़े. यहां खास बात ये है कि गृहमंत्री बुलेटप्रूफ गाड़ी छोड़कर पैदल जिस इलाके में चल रहे थे ये वो इलाका है. जब गोली कब किधर से आ जाए किसी को कुछ पता नहीं. लेकिन ये जानते हुए भी गृहमंत्री पैदल गए और आयुष्मान भारत हेल्थ सेंटर में काम करने वाली महिला डॉक्टर और पारा मेडिकल टीम के लोगों बात की. वहां उन्हें बताया गया कि ज्यादातर केस प्रसूति और बच्चों के जन्म संबंधी आते हैं जिनका सफल इलाज किया जा रहा है.

सरकारी राशन के दुकान की पहुंचे शाह
उसके बाद गृहमंत्री ने हेल्थ सेंटर के ठीक बगल में मौजूद सरकारी राशन के दुकान का रुख किया. राशन की दुकान में भरी हुई चावल की बोरियों को देखकर अमित शाह खुश हुए. वहां मौजूद बस्तर जोन के आइजी सुंदरराज ने गृहमंत्री को बताया कि इलाके से जैसे ही नक्सलियों को अंदुरूनी हिस्से में खदेड़ा गया और जैसे सीआरपीएफ कैंप या फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस का निर्माण हुआ उसके साथ ही उस इलाके में बिजली पहुंचाई गई. सड़क का निर्माण किया गया साथ ही स्कूल, हेल्थ सेंटर और राशन की दुकान (पीडीएस) खोली गई.

लोगों की समस्याओं को जाना
इस बीच गृहमंत्री अमित शाह जब हेल्थ सेंटर से बगल के राशन दुकान में जा रहे थे बगल के गांव के पुरुष, महिला और बच्चे इक्कठे हो गए थे. वहां मौजूद ग्रामीणों के तालियों की गूंज वहां के फिजाओं में बहुत देर तक गड़गड़ाती रही. ग्रामीणों की ये तालियां अपने आप में वहां से नक्सलवादी उग्रवाद के युग के अंत और मुख्यधारा से जुड़ने की कहानी बयां कर रही थी. वहां मौजूद लोगों से भी गृहमंत्री ने खुलकर उनकी समस्याओं के बारे में जाना. ज्यादातर लोग मोबाइल टावर की सुविधा और कुछ लोग राशन कार्ड नहीं होने की समस्या को बताए. गृह मंत्री को ये जानकर खुशी हुई कि लोगों को 10 किलो चावल मुफ्त में मिल रहा है. उन्होंने वहां के लोगों को आश्वस्त किया कि जिन 22 परिवारों का राशन कार्ड नहीं बना है. वहां के डीएम तुरंत बनवाकर उन्हें देंगे. गृहमंत्री ने वहां से निकलने से पहले ही वहां के डीएम और अन्य अधिकारियों से शीघ्र मोबाइल टावर लगवाने के लिए बात करने का आदेश दिया.

गृह मंत्री शाह ने जवान से की बातचीत
वहां से पोटकपल्ली सीआरपीएफ कैंप के लिए निकलते वक्त गृहमंत्री जब गाड़ी में बैठने जा रहे थे, तभी सड़क के दूसरी तरफ अत्याधुनिक असलहा लिए खड़ा एक युवा रंगरूट पर पड़ा. अमित शाह ने अपने सुरक्षा अधिकारी से उसे पास बुलाने को कहा. दरअसल, वो जवान उसी इलाके से बहाल किया गया डीआरजी यानि डिस्ट्रिक्ट रिजर्व ग्रुप का जवान था. जब वो करीब आया तो गृहमंत्री ने पूछा कब से नियुक्त हुए हो. उसने बताया करीब 2 साल हुए. गृहमंत्री का अगला सवाल था. पहले क्या करते थे ? उस डीआरजी जवान ने बताया कि वो अपने गांव में ही रहता था. कोई काम नहीं था. गृहमंत्री ने फिर पूछा कि नक्सली लोग अब भी परेशान करते हैं यहां?उसने कहा पहले करते थे अब बहुत कम करते हैं. अंत में गृहमंत्री ने उससे कहा कि यहां के अपने साथी आदिवासी लोगों की सुरक्षा का ख्याल रखना. जवान का जवाब आया. जी जरूर.

सीआरपीएफ के जवानों से संवाद
वहां से लौटकर गृहमंत्री अमित शाह वापस पोटकपल्ली कैंप पहुंचे जहां सीआरपीएफ के जवानों से संवाद किया.. गृहमंत्री ने कैंप के जवानों से कहा कि हम आपको यहां हो रही दिक्कतों को बखूबी जानते हैं लेकिन आप लोगों पर राष्ट्र निर्माण की बड़ी जिम्मेदारी है…क्योंकि यहां के लोगों की सुरक्षा और सरकार द्वारा किए जा रहे विकास कार्यों को सुरक्षित ढंग से पूरा कराने के काम से आपको बहुत संतोष होगा.

फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस से गृहमंत्री का संदेश साफ
कुल मिलाकर पोटकपल्ली के फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस से गृहमंत्री का ये संदेश साफ है कि एक तरफ सरकार जहां नक्सली उग्रवाद को सिमटाना चाहती है. वहीं दूसरी तरफ सुरक्षा, सरकारी सुविधा, इन्फ्रास्ट्रक्चर और विश्वास बहाली के जरिए इलाके के लोगों को मुख्यधारा से जोड़कर नक्सलवाद के जड़ से खत्म करना चाहती है.

2019 से अब तक 181 सुरक्षा बलों के कैंप
केंद्र की मोदी सरकार अब नक्सलवादी उग्रवादियों पर बचाव की मुद्रा के बजाय आक्रामक हमले की मुद्रा में है. नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई के लिए गृहमंत्रालय ने घोर नक्सली बेल्ट में 2019 से अब तक 181 सुरक्षा बलों के कैंप बनाए गए हैं. नक्सलियों के फंडिंग पर नाकेबंदी की गई है. इस क्रम में 2019 से अब तक ईडी, एनआईए और पुलिस बलों द्वारा 30 करोड़ रुपए जब्त किए गए हैं. नक्सलियों को उनके प्रभाव वाले एरिया के जंगलों में सिकोड़ने के लिए करीब 10000 सीआरपीएफ जवानों की अतिरिक्त तैनाती की गई है, जो रेगुलर नक्सली उग्रवादियों को अंदर की ओर जंगल में सिकोड़ते जा रहे हैं.

सुरक्षा बलों को अत्याधुनिक तकनीकी से लैश किया
इसके साथ ही नक्सलवादी चुनौती से निपटने के लिए गृहमंत्रालय ने सुरक्षा बलों को अत्याधुनिक तकनीकी से लैश किया है. सुरक्षा बलों को नाइट विजन इक्विपमेंट, नाइट हेलीपैड का निर्माण, गृहमंत्रालय के अपने 14 हेलीकॉप्टर पायलट और 3 इंजीनर्स की नियुक्ति,उनको लैंड माइंस से बचाव के लिए बुलेटप्रूफ जैकेट, सेंसरयुक्त अत्याधुनिक जूते, एयर सर्विलेंस और हमले के लिए बुलेटप्रूफ 9 हेलीकॉप्टर, कम्युनिकेशन के लिए सेपरेट टेलीफोन लाइन(जो टावर उड़ा देने की स्थिति में भी कारगर होते हैं) और अत्याधुनिक हथियारों से लैस किया गया है.

सुरक्षा बलों को इसी अत्याधुनिक तकनीकी और हथियारों से लैश करने और उनके मनोबल बढ़ाने का ही नतीजा है कि कुछ महीने पहले 13 दिनों में 46 अटैक करके सुरक्षा बलों ने झारखंड के सबसे अधिक नक्सली उग्रवाद से प्रभावित “बूढ़ा पहाड़” इलाके को को नक्सली प्रभाव से मुक्त करा लिया. आज सीआरपीएफ का कैंप बनाकर इलाके को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने में सफलता मिली है.

पिछले 08 वर्षों में 10718 करोड़ की लागत से 9356 km सड़क निर्माण
अमित शाह की पहल पर जो नक्सल विरोधी ऑपरेशन चलाया जा रहा है. उससे सड़के बनाई जा रही हैं, उद्योग लगाए जा रहे हैं जिससे लोगों को रोजगार के साधन नहीं मिले हैं यहां पर विकास का रास्ता खुला है. जहां तक नक्सली बेल्ट में आम आदमी के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट की बात करें तो पिछले 08 वर्षों में 10718 करोड़ की लागत से 9356 किलो मीटर सड़कों का निर्माण इन नक्सली बेल्ट में किया गया है. इन नक्सली इलाकों में 4080 करोड़ खर्च करके 2343 मोबाइल टावर लगाया गया है ताकि इलाके के लोग बेहतर कम्युनिकेशन नेटवर्क से जुड़ सकें. वहीं दूसरे चरण में 2210 करोड़ के लागत से 2542 मोबाइल टावर लगाए जा रहे है.

नक्सलियों का गढ़
कभी बस्तर रीजन नक्सलियों का गढ़ था जिसके चार प्रमुख केन्द्र थे. बीजापुर, सुकमा, दांतेवाड़ा और बस्तर. जगदलपुर इस रीजन का हेडक्वार्टर था. नक्सलियों की प्रमुख समीति दंडकारण्य जोनल समीति भी इसी बस्तर रीजन में सक्रिय था और हिडमा समेत नक्सलियों के शीर्ष नेता अब भी यहां मौजूद हैं. लेकिन जहां तक उनके प्रभाव की बात है तो आज की तारीख में ये पूरी तरीके से खत्म होता दिखाई दे रहा है. आज बड़ी तादात में सीआरपीएफ अंदरूनी नक्सली इलाकों में अपने फारवर्ड बेस यानि नए कैंप भी स्थापित कर रही है जहां कुछ महीनों पहले ही नक्सली प्रमुखता से अपनी गतिविधियां चलाते थे. पिछले डेढ़ साल की बात करें तो इस अवधि में सीआरपीएफ ने अपने छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती कोर नक्सल प्रभावित इलाकों में 18 फारवर्ड बेस स्थापित किए हैं जहां आजादी के बाद पहली बार देश की कोई फोर्स घुस पाई थी.

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