एमएलसी के उम्मीदवारों का एलान होते ही समाजवादी पार्टी (SP) और उसकी सहयोगी पार्टियों में महाभारत मच गया है. महान दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य ने गठबंधन से अलग होने का एलान कर दिया है. तो ओम प्रकाश राजभर की पार्टी के लोग भी अखिलेश यादव के खिलाफ ताल ठोंकने लगे हैं. समाजवादी पार्टी ने इस बार किसी भी सहयोगी दल के नेता को विधान परिषद चुनाव में टिकट नहीं दिया है.
राजभर अपने बड़े बेटे अरविंद के लिए लॉबिंग कर रहे थे. इस बारे में उन्होंने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से भी बात की थी. लेकिन बात नहीं बनी. ओम प्रकाश राजभर इन दिनों आज़मगढ़ में समाजवादी पार्टी के लिए चुनाव प्रचार कर रहे हैं. अखिलेश के चचेरे भाई धर्मेन्द्र यहां से लोकसभा का उप चुनाव लड़ रहे हैं.
बेटे के लिए एमएलसी का टिकट न मिलने पर ओम प्रकाश राजभर तो चुरा हैं लेकिन उनकी पार्टी के बाक़ी नेताओं ने समाजवादी पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. पार्टी के प्रवक्ता पीयूष मिश्रा ने ट्वीट कर कहा है कि आरएलडी 38 सीटों पर लड़ कर 8 सीटें जीत पाई, फिर भी उसे राज्यसभा का टिकट मिल गया. हम 16 सीटों पर लड़ कर 6 जीते फिर भी हमारी ऐसी उपेक्षा हुई.
यही शिकायत केशव देव मौर्य की है. उन्हें उम्मीद थी कि शायद उनकी पार्टी के एमएलसी का एक टिकट मिल जाए. लेकिन ये टिकट तो स्वामी प्रसाद मौर्य को मिल गया. जबकि वे पिछला चुनाव हार चुके हैं. हार कर भी स्वामी को इनाम मिल गया. अखिलेश यादव ने पिछले विधानसभा चुनाव में केशव देव की पत्नी और बेटे को टिकट दिया था. लेकिन दोनों चुनाव हार गए.
अब वे कहते हैं कि अखिलेश यादव चाटुकारों से घिर गए हैं. उनकी सिक्योरिटी वाले उनसे मिलवाने के लिए पैसे लेते हैं. वे कहते हैं कि मौर्य बिरादरी का वोट उनके पास है लेकिन वे स्वामी प्रसाद मौर्य के पीछे भाग रहे हैं. ऐसे ही कई आरोप लगाते हुए उन्होंने समाजवादी पार्टी गठबंधन से बाहर होने का एलान भी कर दिया.
अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि ओम प्रकाश राजभर भी अब केशव देव मौर्य की तरह कोई फ़ैसला तो नहीं लेने वाले हैं. राजभर अभी जल्दबाज़ी में कुछ नहीं करना चाहते हैं. वे अभी तेल और उसकी धार की थाह लेने के मूड में हैं. ये बात अलग है कि वे भी इन दिनों अखिलेश यादव को बिन मांगे खूब सलाह दे रहे हैं.
ओम प्रकाश राजभर ने कहा कि अखिलेश को गाड़ी छोड़ कर पैदल ही कार्यकर्ताओं से मिलना चाहिए. चाटुकारों से दूर रहना चाहिए. अखिलेश यादव की दुविधा भी कम नहीं है. कभी अपने घर परिवार के लोग नाराज़ हो जाते हैं तो कभी आज़म खान जैसे अपनी पार्टी वाले तो कभी सहयोगी पार्टी वाले. आख़िर वे किसे मनायें और किसे रूठा रहने दें.